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मिर्जापुर में पुरूषों के बजाय महिलाएं करती हैं पिंडदान, माता सीता से जुड़ी है ये खास परंपरा

मिर्जापुर। पितृपक्ष में पितरों की आत्मसंतुष्टि के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। इस वर्ष पितरों का श्राद्ध कर्म 29 सितंबर से शुरू होगा और 14 अक्टूबर को समापन होगा। श्राद्ध पितरों की तिथि के अनुसार किया जाता है। आमतौर पर श्राद्ध कर्म, तर्पण और पिंडदान पुरुष करते हैं, लेकिन मिर्जापुर में एक जगह ऐसी भी है, जहां अपने पितरों की शांति के लिए महिलाएं इस धर्म को निभाती हैं। ऐसी मान्यता है कि मां सीता ने भी यहां वनवास के दौरान तर्पण किया था, तभी से यह परंपरा चली आ रही है।

बता दें कि धर्मनगरी काशी एवं प्रयागराज के मध्य स्थित विंध्य क्षेत्र में महिलाओं द्वारा पूर्वजों को पिंडदान करने की परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है। अष्टभुजा पहाड़ी पर स्थित सीता कुंड पर मातृ नवमी के दिन महिलाएं अपने पितरों की प्रसन्नता के लिए तर्पण व पिंडदान करती हैं। ऐसी मान्यता है कि वनवास के दौरान मां सीता ने यहां श्राद्ध तर्पण किया था, जिसे सीता कुंड के नाम से जाना जाता है। उसी परंपरा को आज भी महिलाएं आगे बढ़ा रही हैं और प्रत्येक वर्ष अपने पितरों की शांति के लिए यहां विधि-विधान से श्राद्धकर्म करती हैं.

हजारों की संख्या में पहुंचती हैं महिलाएं’

धर्मगुरु पंडित त्रियोगी नारायण मिश्र ने बताया कि प्राचीन काल से ही सीता कुंड महिलाओं को सामाजिक समानता की दिशा में प्रेरित करता आया है। वैसे तो सनातन धर्म में पुरुषों को ही पितृ तर्पण करने का अधिकार प्राप्त है, लेकिन विंध्य धाम का सीता कुंड इसका अपवाद है। उन्होंने बताया कि त्रेता युग से ही विंध्याचल धाम स्त्रियों को पितृ तर्पण देने का साक्षी बना हुआ है। यहां आज भी पितृ तर्पण और अपने पूर्वजों को याद करने के लिए दूर-दूर से हजारों की संख्या में महिलाएं आती हैं। साथ ही यहां महिलाएं सौभाग्य सामग्री का दान भी करती हैं। मिश्र बताते हैं कि इस कुंड के जल से स्नान कर लेने से मनुष्य परम पद को प्राप्त कर लेता है।