रांची। रिम्स की व्यवस्था कितनी बेहतर है, इसका अंदाजा यहां मिलने वाली सुविधाओं से लगाया जा सकता है। रिम्स की ओर बड़ों को तो ट्राली नहीं मिलती, लेकिन नवजात को भी सुविधाओं से वंचित होना पड़ रहा है। रविवार का रिम्स के पुरानी इमरजेंसी के पास ऐसा दृश्य देखने को मिला, जिसमें एक मां गोद में नवजात को रखी हुई थी और पति कंधे पर आक्सीजन सिलेंडर लेकर निजी अस्पताल जा रहा था।
सोनाहातू के दो दंपती अपने बच्चे को गोद में लिए थे और पाइप के माध्यम से बच्चे से आक्सीजन सिलेंडर जुड़ा हुआ था। बच्चे को बेहतर इलाज के लिए निजी अस्पताल की ओर ले जा रहे थे। यह तस्वीर अपने आप में कई बातों को बयां करती है। यहां मिलने वाली सुविधाओं पर सवाल उठाती है।
यह कोई पहला मरीज नहीं था, बल्कि इसके पीछे एक और दंपती इसी तरह हाथ में बच्चे और आक्सीजन सिलेंडर लिए बाहर निकला, लेकिन इस बीच किसी ने भी बच्चे को व्हीलचेयर उपलब्ध कराई, जिसमें उसकी मां बच्चे को लेकर बैठ सके और आक्सीजन सिलेंडर ले जा सके। दिल दहला देने वाली इस तस्वीर का कोई जवाब प्रबंधन के पास नहीं है। रटे-रटाये जवाब में बताया कि वे इस मामले की जांच करेंगे और दोषियों पर कार्रवाई होगी। न्यूनेटल वार्ड में नवजात बच्चों के इलाज की व्यवस्था ना के बराबर है। यहां पर कई वार्मर खराब हो चुके हैं और एक-एक वार्मर पर पांच से छह बच्चों का इलाज हो रहा है। रिम्स के चौथे तल्ले में ऐसे कई केस हैं, जिसमें माता-पिता अपने बच्चे के इलाज के लिए वार्मर खोजते हैं, लेकिन उन्हें इंतजार करना पड़ता है। बच्चे के पिता ने बताया कि यहां की व्यवस्था काफी खराब है, इलाज का इंतजार करता तो शायद बच्चे को खोना पड़ सकता था। गंदगी इतनी है कि बच्चों में संक्रमण का खतरा भी हो सकता है। जिसके बाद शिशु वार्ड के डाक्टरों ने बच्चे को किसी निजी अस्पताल ले जाने की सलाह दी। जिसके बाद वे अपने बच्चे की जान बचाने के लिए निजी अस्पताल ले गए, इसके लिए निजी अस्पताल से एक एंबुलेंस भी मंगवा दिया गया, जिसमें दोनों बच्चे अपने माता-पिता के साथ निजी अस्पताल गए।
दोनों बच्चों को सांस लेने में हो रही थी परेशानी
दोनों नवजात को सांस लेने में शिकायत थी, जिसके लिए अभिभावक उन्हें निजी अस्पताल ले गए। स्वजनों ने बताया कि बच्चे का अगर इलाज नहीं होगा तो वो उसे छोड़ नहीं सकते। भले ही इसके लिए उनकी जेब से हजारों रुपये लग जाए। जो इलाज रिम्स में निःशुल्क होता वो इलाज महंगा होगा। इससे यही मालूम पड़ता है कि राज्य सरकार की योजनाएं गरीबों तक पहुंच ही नहीं रही है, सिर्फ कागजातों पर ही यह बन कर रह गई है।