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सार्वजनिक स्थान पर हो टिप्पणी तभी माना जाएगा अपराध, पंजाब हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि किसी व्यक्ति का अपमान या धमकी एससी एसटी एक्ट के तहत अपराध नहीं होगी जब तक कि ऐसी टिप्पणी सार्वजनिक स्थान पर नहीं की जाती। जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि एक्ट के तहत अपराध गठित करने के लिए अपमान या धमकी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित पीड़ित के कारण होनी चाहिए।
इसके अलावा, परविधान का अन्य महत्वपूर्ण घटक सार्वजनिक दृश्य के भीतर अपमान या धमकी किसी भी स्थान पर होनी चाहिए। हाई कोर्ट के जस्टिस दीपक गुप्ता ने विशेष न्यायाधीश, लुधियाना के आदेश के खिलाफ की गई अपील पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

ये है मामला

याची ने लुधियाना कोर्ट के सामने हत्या और एससी एसटी एक्ट की धारा 3 और 4 के तहत जातिवादी टिप्पणी पारित करने के अपराध में अग्रिम जमानत की मांग की थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। यह आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ता ने बैंक्वेट हाल खरीदने के लिए सेवक सिंह को औकात बताकर जातिवादी टिप्पणी की। उसके बाद अपीलकर्ता के पति ने अपनी कार से सेवक सिंह को मारकर गंभीर चोटें पहुंचाईं, जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गई।

वकील ने दी ये दलील

याचिकाकर्ता के वकील की ओर से दलील दी गई कि एफआईआर में उनकी कोई भूमिका नहीं है। पूरे आरोप उसके पति पर हैं, जिन्हें पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है। प्रस्तुत प्रस्तुतियों पर विचार करते हुए हाई कोर्ट ने हितेश वर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक्ट का उद्देश्य उल्लंघन करने वालों को दंडित करना है, जो समाज के कमजोर वर्ग के खिलाफ अपमान और उत्पीड़न करते हैं, लेकिन अदालत को इस बात पर विचार करने से रोका नहीं गया कि लगाए गए आरोपों से प्रथम दृष्टया धारा एससी एसटी

एक्ट के तहत अपराध बनता है या नहीं।

वर्तमान मामले में अपीलकर्ता के खिलाफ एकमात्र आरोप यह है कि उसने बैंक्वेट हाल खरीदने के लिए शिकायतकर्ता की स्थिति के बारे में शब्द कहे और उसके खिलाफ जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया। कोर्ट ने कहा उक्त घटना बैंक्वेट हाल में हुई, जब केवल शिकायतकर्ता पक्ष अपीलकर्ता और उसके परिवार के सदस्य उपस्थित थे, यानी किसी अन्य सार्वजनिक दृश्य के भीतर नहीं। सवाल उठता है कि क्या ऐसी परिस्थितियों में एससी/एसटी अधिनियम की धाराएं लागु होती हैं।
एससी एसटी एक्ट धारा 3(1) का अवलोकन करते हुए हाई कोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि किसी व्यक्ति को अपराध अत्याचार के लिए दंड के लिए उत्तरदायी बनाने के लिए आवश्यक सामग्रियों में से घटना किसी भी सार्वजनिक स्थान पर, सार्वजनिक दृश्य के भीतर होनी चाहिए।

एफआईआर ने ये पता चला

अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में एफआईआर के अवलोकन से पता चलता है कि ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आरोपित राजिंदर कौर यानी अपीलकर्ता को पता था कि मृतक सेवक सिंह-शिकायतकर्ता-अनुसूचित जाति का है। इसके अलावा, अपीलकर्ता द्वारा किसी विशेष जाति का उल्लेख नहीं किया गया, जिससे शिकायतकर्ता का अपमान किया जा सके।

विशेष जाति का खुलासा नहीं किया गया

आरोप है कि जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया गया, बिना यह बताए कि किन शब्दों का इस्तेमाल किया गया। इसमें कहा गया किसी विशेष जाति का खुलासा नहीं किया गया। अन्यथा कथित जातिवादी शब्द बैंक्वेट हाल में कहे गए, यानी सार्वजनिक दृश्य के किसी भी स्थान पर नहीं। उपरोक्त के आलोक में हाई कोर्ट ने राहत दी और निर्देश दिया कि उसकी गिरफ्तारी की स्थिति में कुछ शर्तों के अधीन जमानत दी जाएगी।