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पुलिस रिपोर्ट को नहीं माना जा सकता कंप्लेंट, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रद्द की प्राथमिकी

प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 के तहत घोषित संज्ञेय अपराधी के खिलाफ प्राथमिकी अथवा पुलिस चार्जशीट पर कोर्ट संज्ञान नहीं ले सकती। धारा 195 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत धारा 172 से धारा 188 भारतीय दंड संहिता के असंज्ञेय अपराध में पुलिस रिपोर्ट पर कोर्ट के संज्ञान लेने को प्रतिबंधित किया गया है। इन धाराओं के अपराध के लिए लोकसेवक व धारा 82 जारी करने वाले मजिस्ट्रेट को लिखित कंप्लेंट केस कायम कर ही कार्रवाई करने का अधिकार है।

प्रश्नगत मामले में 21 अक्टूबर 22 को प्राथमिकी दर्ज हुई। विवेचना के दौरान याची का नाम उजागर हुआ। जितेंद्र सिंह ने कुछ लोगों के खिलाफ लोधी थाने में नामजद प्राथमिकी दर्ज कराई थी। पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की। कोर्ट ने संज्ञान लेकर समन जारी किया। याची हाजिर नहीं हुआ तो गैर जमानती वारंट के बाद धारा 82 जारी कर अपराधी घोषित किया गया।

हाई कोर्ट ने चार्जशीट के बाद पुलिस के अलीगढ़ के लोधी थाने में दर्ज प्राथमिकी को व्यर्थ की कार्रवाई मानते हुए रद कर दिया है। कहा है कि धारा 174ए के अपराध पर कंप्लेंट केस कायम कर कार्रवाई की जा सकती है। कोर्ट ने संबंधित मजिस्ट्रेट को याची के खिलाफ लिखित कंप्लेंट दर्ज कर कार्रवाई करने की छूट दी है।

याचिका स्वीकार कर दिया आदेश

न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति अरूण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने सुमित व अन्य की याचिका स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया है। इसके साथ ही आदेश की प्रति सभी जिला अदालतों और जेटीआरआई लखनऊ को भेजने का निर्देश दिया है, ताकि न्यायिक अधिकारियों को सजग किया जा सके।

कोर्ट ने कही ये बात

कोर्ट ने कहा कि धारा 174-ए आईपीसी 2005 में संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया था। इसलिए, स्पष्ट है कि धारा 174-ए आईपीसी धारा 195(1)(ए)(1) सीआरपीसी में उल्लिखित अपराधों का हिस्सा है। धारा 195 दंड प्रक्रिया संहिता भारतीय दंड संहिता की धारा 172 से 188 तक के अपराधों पर कोर्ट के पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान लेने पर रोक लगाती है। लोक सेवक की लिखित कंप्लेंट पर ही कोर्ट कार्रवाई कर सकती है। मजिस्ट्रेट भी लोक सेवक माना जाता है। संज्ञेय अपराध में पुलिस को बिना वारंट अभियुक्त को गिरफ्तार करने की शक्ति है। व्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित होती है, जबकि, 174-ए का अपराध संज्ञेय की श्रेणी में नहीं आता है।

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