जमुई। जमुई के अपर जिला सत्र न्यायाधीश प्रथम सह एससी-एसटी मामलों के विशेष न्यायाधीश धीरेंद्र बहादुर सिंह ने दो अनुसंधानकर्ता पुलिस पदाधिकारी (एक महिला और एक पुरुष दारोगा) को शो-काज करते हुए गिरफ्तार कर लाए गए तीन लोगों की गिरफ्तारी को अवैध करार दिया। उसे जेल भेजने से पूरी तरह इंकार कर दिया।
न्यायालय में आम आदमी का भरोसा किस प्रकार कानून के प्रविधानों के तहत जीवित रहता है। इसका एक बेहतरीन नमूना तब देखने को मिला जब अनुसूचित जाति-जनजाति मामलों के विशेष न्यायाधीश की अदालत में जमुई अनुसूचित जाति-जनजाति थाने की एक महिला पुलिस पदाधिकारी ने जमुई एससी-एसटी थाना कांड संख्या 02/2024 में पिपराडीह झाझा के पिता पुत्र किट्टू रावत और अभय रावत को गिरफ्तार कर धीरेंद्र बहादुर सिंह की अदालत में जेल भेजने के लिए प्रस्तुत किया।
जमुई एससी-एसटी थाना कांड संख्या 35/2023 में एक अनुसंधानकर्ता पुलिस पदाधिकारी ने दूधकसाई सोनो थाना के गन्नू यादव को गिरफ्तार कर इस मामले में न्यायालय में जेल भेजने के लिए प्रस्तुत किया। अपने न्यायिक कार्यवाही और फैसलों के लिए सख्त एडीजे धीरेंद्र बहादुर सिंह ने रिकार्ड का अवलोकन करते ही पुलिस पदाधिकारी को कड़ी फटकार लगाते हुए अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि यदि मैं जमानत की सुनवाई के दौरान सख्त रहता हूं तो जेल भेजने के दौरान भी यह सख्ती कायम रहेगी।
उन्होंने तत्काल दोनों पुलिस पदाधिकारी को शो-काज नोटिस जारी करते हुए तुरंत जवाब मांगा है। साथ ही गिरफ्तार कर लाए गए तीनों लोगों को जेल भेजने से मना कर दिया। उन्होंने अपने त्वरित आदेश में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय अर्नेश कुमार बनाम स्टेट आफ बिहार में स्पष्ट आदेश है कि गिरफ्तारी से पहले धारा 41(1) के प्रविधान के तहत आरोपित को पूछताछ के लिए नोटिस जारी किया जाएगा। उसे थाने पर बुलाया जाएगा, लेकिन इन प्रविधानों का उल्लंघन कर न्यायालय के आंख में धूल झोंकने की कोशिश की गई।
हालांकि, दोनों पुलिस पदाधिकारी ने बताया कि उन्होंने वरीय पुलिस पदाधिकारी के आदेश का पालन किया है। वैसे ही एससी-एसटी अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार के मुकदमे की बाढ़ आई हुई। ऐसे मुकदमे दर्ज होने के बाद आरोपित को अग्रिम जमानत का प्रविधान भी नहीं है।