पटना। पटना हाईकोर्ट ने नाबालिग पत्नी को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है। इसे लेकर समाज में बड़ा संदेश गया है। पटना हाई कोर्ट ने एक नाबालिग लड़की की कस्टडी उसके पति को सौंपने से इंकार करते हुए आदेश दिया कि वह राजकीय बालिका गृह में ही रहेगी। न्यायाधीश पीबी बजनथ्री एवं न्यायाधीश रमेश चंद मालवीय की खंडपीठ ने एक मामले पर सुनवाई करते हुए पति को दंपती के नवजात बच्चे के नाम पर एक बैंक खाता खोलने और नियमित रूप से उपयुक्त राशि जमा करने का निर्देश दिया।
अदालत ने 23 वर्षीय युवक द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई की, जिसने राज्य बालिका देखभाल गृह से अपनी पत्नी की रिहाई के लिए निर्देश देने की मांग की थी। पत्नी ने दावा किया कि वह बालिग है और उसने अपनी मर्जी से उससे शादी की है। अदालत के संज्ञान में यह भी लाया गया कि लड़की के पिता ने याचिकाकर्ता (पति) के खिलाफ मामला दर्ज कराया था, जिसमें उसे जमानत दे दी गई है।
स्कूल के रिकॉर्ड से हुआ नाबालिग होने का खुलासा
लड़की ने यह भी कहा कि वह अपने पति के साथ रहना चाहती है और उसने अपने पिता के साथ जाने से इनकार कर दिया। हालांकि, उसके स्कूल के रिकार्ड से पता चला कि वह नाबालिग है, जिसकी उम्र लगभग 15 साल है। यह मामला पटना जिला के बख्तियारपुर थाना क्षेत्र के सालिमपुर ओपी का है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि नाबालिग लड़की ने विशेष रूप से अपने पिता के साथ जाने से इनकार कर दिया है। इसलिए राज्य बालिका देखभाल गृह में उसके रहने को उसकी भलाई और उसके बच्चे के लिए प्रतिकूल नहीं कहा जा सकता है।
अदालत ने पति को दिया ये निर्देश
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अवैध हिरासत पर बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट के माध्यम से नाबालिग लड़की की हिरासत का दावा करने का पति में कोई अंतर्निहित अधिकार निहित नहीं है। दलीलों का विरोध करते हुए राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि लड़की नाबालिग पाई गई थी और यह बाल विवाह का मामला था, जो कानून के तहत निषिद्ध है।
अदालत ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम और बाल विवाह निषेध अधिनियम दोनों बाल विवाह को दंडित करते हैं। यह भी कहा कि एक लड़की का कल्याण सर्वाेपरि है। हाईकोर्ट ने नाबालिग के राजकीय बालिका गृह में रहने व नवजात के लिए पैसे जमा करने का आदेश दिया।