पटना। आइजीआइएमएस के रिप्रोडक्टिव विभाग निसंतान गरीब दंपतियों के लिए वरदान साबित हो रहा है। शुक्रवार को यहां एक ऐसी महिला का अंडाणु निकाल कर उसका भ्रूण बना फ्रीज किया गया, जिसके गर्भाशय ही नहीं था। ऐसे में दोनों अंडाशय में अंडाणु बनते थे लेकिन गर्भाशय नहीं होने से पेट में जाकर बेकार हो जाते थे। कई जगह से उपचार कराने के बाद निसंतान दंपती आइजीआइएमएस आया था।
यह जानकारी डीडीए सह चिकित्साधीक्षक डा. मनीष मंडल ने दी। निदेशक प्रो. डा. बिन्दे कुमार और चिकित्सा अधीक्षक-2 डा. अमन कुमार ने इस जटिल व दुर्लभ प्रक्रिया के लिए प्रजनन मेडिसिन की विभागाध्यक्ष डा. कल्पना सिंह व उनकी टीम को बधाई दी है। डीन एजुकेशन डा. ओम कुमार ने बताया कि प्रजनन औषधि विभाग में एमसीएच कोर्स की पढ़ाई भी होती है।
खानपान व पर्यावरण में बदलाव से बढ़ती निसंतानता
डा. कल्पना सिंह ने बताया कि जन्म से ही महिला का गर्भाशय व वैजाइन पूरी तरह से विकसित नहीं थे। इसे मेडिकल भाषा में एमआरकेएच कहा जाता है। यह महिला संतान प्राप्ति के लिए इलाज कराने आई थीं। एमआरकेएच एक दुर्लभ स्थिति है, जो प्रति 5000 महिला में किसी एक को हो सकती है। आइवीएफ प्रक्रिया द्वारा दोनों अंडाशय से अंडाणु निकाल कर शुक्राणु की मदद से उसका भ्रूण बनाकर उसे फ्रीज कर लिया गया है। डा. कल्पना ने बताया कि खानपान व पर्यावरण में बदलाव के कारण प्रदेश में निसंतानता तेजी से बढ़ी है।
सरकारी दर पर निसंतानता का पूर्ण उपचार
चिकित्साधीक्षक डा. मनीष मंडल ने बताया कि प्रदेश का यह पहला सरकारी संस्थान है, जहां आइवीएफ समेत गर्भाशय की गांठ एंडोमेट्रियोसिस, पीसीओडी, जन्मजात गर्भाशय विकार, ट्यूब में पानी निकालने के लिए लैप्रोस्कोपी- हिस्ट्रोस्कोपी सर्जरी, आइयूआइ, आइसीएसआइ शुक्राणु, अंडे व भ्रूण का क्रायोप्रिजर्वेशन, लेजर असिस्टेड हैचिंग आदि सुविधा न्यूनतम दर पर उपलब्ध हैं। पुरुष निसंतानता में शुक्राणु कम या नहीं होने पर टीसा-पीसा की सुविधा भी है। जिन महिलाओं के पति बाहर रहते हैं और इलाज के क्रम में साथ नहीं रह सकते, उनके शुक्राणु को फ्रीज करने की भी सुविधा है। इसी प्रकार जो महिलाएं देरी से बच्चा चाहती हैं या कैंसर इलाज के कारण अंडाणु फ्रीज कराना चाहती हैं, उसकी भी सुविधा है।