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छत्तीसगढ़

हरेली के साथ ही बस्तर में दशहरा पर्व की हुई शुरूआत, इस बार 75 दिन का नहीं 107 दिन का होगा पर्व, ये होगा खास… बस्तर

हरेली पर्व के साथ ही बस्तर में दशहरा पर्व की शुरूआत पाट जात्रा रस्म के साथ हो चुकी है। दंतेश्वरी मंदिर के सामने सोमवार को ग्राम बिलौरी से पहुंची ठुरलु खोटला का विधि विधान से पूजा की गई। दुनिया में छत्तीसगढ़ का बस्तर ही एक ऐसा जिला है जहां सबसे लंबे अवधि तक दशहरा का पर्व मनाया जाता है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस बार दशहरा का पर्व यहां 75 दिन का नहीं, बल्कि 107 दिन का होगा। दो महीने का अधिमास होने के कारण इनकी अवधि बढ़ गई है। पर्व की खास बात यह भी है कि इस दशहरे में न तो भगवान राम होते हैं और न ही रावण का वध होता है। बल्कि यह पर्व देवी मां को समर्पित है।

0 देवी मां रथ पर होती हैं सवार
बस्तर दशहरा के दौरान रथ यात्रा निकलती है। इन रथों पर देवी मां सवार होती हैं। रथ निर्माण की पहली लकड़ी को स्थानीय बोली में ठुरलु खोटला और टीका पाटा कहते हैं। हरेली अमावस्या को माचकोट जंगल से लाई गई लकड़ी (ठुरलू खोटला) की पूजा की जाती है। जिसे पाट जात्रा रस्म कहते हैं। इसके बाद ग्राम बिरिंगपाल के ग्रामीण सीरासार भवन में सरई पेड़ की टहनी को स्थापित कर डेरीगड़ाई की रस्म पूरी करते हैं। इसके साथ ही रथ निर्माण के लिए जंगलों से लकड़ी शहर पहुंचाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

0 10 दिन में तैयार होता है रथ
पारंपरिक औजारों से 10 दिन में रथ तैयार होता है। झारउमरगांव और बेड़ाउमरगांव के करीब दो सौ ग्रामीण रथ निर्माण की जिम्मेदारी निभाते हैं। इसमें लगने वाले कील और लोहे की पट्टियां भी पारंपरिक रुप से स्थानीय लोहार सीरासार भवन में तैयार करते है। बस्तर दशहरा में दो अलग-अलग रथ चलते हैं। चार पहियों वाला रथ को फूल रथ तथा आठ पहिए वाला रथ को विजय रथ कहते हैं। लोक साहित्यकार रुद्रनारायण पानीग्राही बताते हैं कि फूल रथ प्रतिवर्ष द्वितीय से सप्तमी तक छह दिन और विजय रथ विजयादशमी व एकादशी के दिन भीतर रैनी तथा बाहर रैनी के रूप में दो दिन खींचा जाता है।

0 राजा पुरुषोत्तम देव के शासनकाल में हुई थी शुरुआत
राजा पुरुषोत्तम देव के शासनकाल में बस्तर दशहरा की शुरुआत हुई थी। उन्हें जगन्नाथ पुरी में रथपति की उपाधि के साथ 16 पहियों वाला रथ प्रदान किया गया था। 16 पहियों वाला रथ पहली बार वर्ष 1410 में बड़ेडोंगर खींचा गया था। महाराजा पुरुषोत्तम देव भगवान जगन्नाथ के भक्त थे। इसलिए उन्होंने 16 पहियों वाले रथ से चार पहिया अलग कर गोंचा रथ बनवाया। जिसका परिचालन गोंचा पर्व में किया जाता है। इस तरह 12 पहियों वाला दशहरा रथ कुल 200 साल तक खींचा गया।

0 देश-विदेश से आते हैं भक्त
हर साल देश और विदेश से भक्त व पर्यटक मां दंतेश्वरी के दर्शन करने के लिए यहां पहुंचते हैं। बस्तर दशहरा के एतिहासिक तथ्य के अनुसार वर्ष 1408 में बस्तर के काकतीय शासक पुरुषोत्तम देव को 16 पहियों वाला विशाल रथ भेंट किया गया था। इस तरह बस्तर में 615 सालों से दशहरा मनाया जा रहा है। राजा पुरुषोत्तम देव ने जगन्नाथ पुरी से वरदान में मिले 16 चक्कों के रथ को बांट दिया था। उन्होंने सबसे पहले रथ के चार चक्कों को भगवान जगन्नाथ को समर्पित किया और बाकी के बचे हुए 12 चक्कों को दंतेश्वरी माई को अर्पित कर बस्तर दशहरा एक बस्तर गाँचा पर्व मनाने की परंपरा का श्रीगणेश किया था, तब से लेकर अब तक यह परंपरा चली आ रही है।