नई दिल्ली। इस साल 9 और 10 सितंबर को G-20 की 18वीं समिट होने जा रही है। भारत पहली बार G-20 की मेजबानी करेगा। इसके लिए काफी जोर-शोर से तैयारियां की जा रही हैं। दिल्ली को सजाया जा रहा है। ग्लोबल इकोनॉमी में करीब 80 फीसदी से ज्यादा का प्रतिनिधित्व करने वाले जी-20 की अध्यक्षता करना भारत के लिए एक बड़ा मौका है।
G-20 को ग्रुप ऑफ ट्वेंटी कहा जाता है, इस समूह के 19 देश सदस्य हैं, ग्रुप का 20वां सदस्य यूरोपीय संघ है। जी-20 समिट का आयोजन साल में एक बार होता है, हालांकि 2008 से शुरुआत के बाद 2009 और 2010 साल में जी-20 समिट का आयोजन दो-दो बार किया गया था। इस सम्मेलन में ग्रुप के सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष को बुलाया जाता है और कुछ अन्य देशों को भी बुलाया जाता है। इसके बाद सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष बैठकर कई मुद्दों पर चर्चा करते हैं। भारत की अध्यक्षता में इस साल जी-20 सम्मेलन दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित होने जा रहा है। दुनिया की 20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के नेता डिजिटल परिवर्तन, जलवायु वित्तपोषण, सतत विकास लक्ष्य और खाद्य सुरक्षा सहित कई प्रमुक्ष वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करेंगे और समाधान ढूंढेंगे। हालांकि जहां अधिकतर देशों के नेताओं ने भारत आने की पुष्टि की है वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं जिन्होंने साफ इंकार कर दिया है।
ये देश हैं जी-20 के सदस्य
जी-20 को सबसे बड़ा वैश्विक संगठन माना जाता है। इसके सदस्य देशों में भारत के अलावा फ्रांस, चीन, कनाडा, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, अमेरिका, यूके, तुर्की, दक्षिण कोरिया, दक्षिण अफ्रीका, सऊदी अरब, रूस, मैक्सिको, जापान, इटली, इंडोनेशिया तथा 20वें सदस्य के तौर पर यूरोपीय संघ शामिल है। जी-20 की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक वैश्विक व्यापार में भी ये संगठन 80 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है और करीब दो-तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है।
क्या है जी-20 का काम
जी-20 का मूल एजेंडा आर्थिक सहयोग और वित्तीय स्थिरता का है, लेकिन समय के साथ व्यापार, जलवायु परिवर्तन, सस्टेनेबल डेवलपमेंट, स्वास्थ्य, कृषि और भ्रष्टाचार निरोधी एजेंडा भी इसमें शामिल कर लिया गया है। इसमें दो समानांतर तरीकों से चर्चा होती है, पहला फाइनेंशियल और दूसरा शेरपा ट्रैक। फाइनेंशियल ट्रैक में बातचीत का काम वित्त मंत्री संभालते हैं और शेरपा ट्रैक में शेरपा यानी वह व्यक्ति जिसे सरकार शेरपा के तौर पर नियुक्त करती है। चूंकि दुनिया की जीडीपी में 85 फीसदी हिस्सा जी-20 देशों का है। वहीं दुनिया के व्यापार में 75 फीसदी की हिस्सेदारी भी इन्हीं की है, ऐसे में इनकी बैठक को काफी अहम माना जाता है। इनका काम सभी सदस्य देशों के साथ समन्वय बनाना और नेगोशिएट करना होता है।
कई अन्य देशों और संगठनों को भी किया जाता है आमंत्रित
जी-20 की बैठक में इसके 20 सदस्य देशों के अलावा भी अन्य देशों को भी आमंत्रित किया जाता है। भारत ने इस साल 9 देशों को आमंत्रित किया है। ये देश हैं- बांग्लादेश, मिस्र, मॉरिशस, नीदरलैंड्स, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और यूएई। इसके अलावा यूनाइटेड नेशंस, इंटरनेशनल मोनेटरी फंड, वर्ल्ड बैंक, वर्ल्ड हेल्थ ऑरगेनाइजेशन, वर्ल्ड ट्रेड ऑरगेनाइजेशन जैसे संगठन जी-20 में नियमित रूप से आमंत्रित किए जाते हैं।
ऐसे बना ये संगठन
अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, इटली, फ्रांस, जापान और ब्रिटेन देशों का एक G-7 ग्रुप था। इसी ग्रुप का विस्तार G-20 को माना जाता है। साल 1998 में इस ग्रुप में रूस भी जुड़ गया और 1999 में G-8 देशों की बैठक के दौरान एशिया के आर्थिक हालातों की चर्चा की गई। इस चर्चा में 20 बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों को साथ में लाने की बात कही गई और उसी साल बर्लिन में एक बैठक का आयोजन हुआ जिसमें जी-20 की बात उठी। 2007 में विश्वव्यापी आर्थिक और वित्तीय संकट के बाद जी-20 फोरम को राष्ट्रप्रमुखों के स्तर का बना दिया गया। समूह का पहला शिखर सम्मेलन 2008 में वाशिंगटन डीसी में हुआ था। इसके बाद इसकी अहमियत को समझते हुए हर साल इसकी बैठक की जाने लगी।