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प्यार और भरोसे का कत्ल: शकेरेह को नशा देकर जिंदा ताबूत में दफनाया, ऐसे सुलझी हत्याकांड की गुत्थी

नईदिल्ली। ऐसा कहा जाता है कि इश्क और जंग में सबकुछ जायज है,, लेकिन 90 के दशक की एक वारदात ने न सिर्फ प्यार, जज्बात और भरोसे का कत्ल किया, बल्कि इंसानियत को भी शर्मसार कर दिया, यहां तक इस घटना को सुनने वाले भी खौफजदा हो गए, क्योंकि इसमें मक्कारी और अंधविश्वास जैसे पहलू भी शामिल हैं। प्राइम वीडियो पर आने वाली सत्य घटना पर आधारित डांसिंग ऑन द ग्रेव का ट्रेलर सामने आने के बाद से इस हत्याकांड की चौतरफा चर्चा हो रही है। मैसूर राजघराने से ताल्लुक रखने वाली शकेरेह खलीली की हत्या के आरोप में साल 1994 से उम्रकैद की सजा काट रहे स्वामी श्रद्धानंद उर्फ मुरली मनोहर मिश्रा को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। दरअसल, अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में सजा काट रहे श्रद्धानंद की परोल याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया। ऐसे में आज हम आपको शकेरेह खलीली हत्याकांड की धिनौनी दास्तां बताएंगे जब शकेरेह खलीली को जिंदा ताबूत में दफनाया गया था।शकेरेह खलीली का जन्म 27 अगस्त, 1947 को चेन्नई में गुलाम हुसैन नमाजी और गौहर ताज बेगम मिर्जा के घर में हुआ था। उनके दादाजी दीवान सर मिर्जा इस्माइल मैसूर राजघराने के दीवान थे। करोड़ांे की संपत्ति की मालकिन शकेरेह खलीली की 18 साल की उम्र में अकबर मिर्जा खलीली मिर्जा से लव मैरिज हुई थी। भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी अकबर मिर्जा खलीली के साथ शकेरेह खलीली को चार बेटियां हुई थीं, लेकिन फिर भी उनका मन खोया खोया रहता था और उनको बेटे की कमी खलती थी। ऐसे में 25 साल की उम्र में शकेरेह की दिल्ली में मुरली मनोहर मिश्रा से मुलाकात हुई थी। उस वक्त मुरली मनोहर राज परिवार के लिए काम करता था और वह कर से जुड़े मामलों का अच्छा जानकार था। मुरली मनोहर के काम धाम से शकेरेह का परिवार काफी प्रभावित हुआ था। ऐसे में शकेरेह के परिवार ने अपनी संपत्ति को संभालने के लिए मुरली मनोहर को बेंगलुरू बुलाया, जो उनके जीवन की सबसे बड़ी गलती थी और इसी एक गलती के चलते पूरा परिवार बिखर गया और शकेरेह हत्याकांड हर किसी की जुबां में छा गया। विदेश मंत्रालय में सेवाएं देने वाले अकबर मिर्जा खलीली अपने कामकाज की वजह से अक्सर घर से दूर रहते थे, ऐसे में मुरली मनोहर ने शकेरेह के साथ नजदीकियां बढ़ा ली।दरअसल, अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाला मुरली मनोहर खुद को स्वामी श्रद्धानंद बताता था और उसने शकेरेह को यह विश्वास दिलाया कि तंत्र मंत्र की शक्ति से वह शकेरेह के जीवन से बेटे की कमी को दूर कर देगा। श्रद्धानंद पर मोहित हो चुकी शकेरेह ने 21 साल पुराने खलीली के साथ के अपने रिश्ते को खत्म कर दिया था और सभी चारों बेटियों को खलीली को सौंप दिया था। इसके कुछ वक्त बाद 1986 में शकेरेह ने श्रद्धानंद के साथ शादी कर ली। शकेरेह की दूसरी शादी से परिवार का कोई भी व्यक्ति खुश नहीं था। शकेरेह की मां ने तो उसके साथ बातचीत भी बंद कर दी थी। साथ ही चार से तीन बेटियों भी शकेरेह से बातचीत नहीं करती थी, जबकि सबसे छोटी बेटी सबा अपनी मां के बेहद करीब थी और वह अपनी मां के लगातार संपर्क में रही। सबा मुंबई में रहकर मॉडलिंग करती थी, लेकिन अपनी मां को हमेशा फोन करती रहती थी। देखते ही देखते सबा की उसकी मां के साथ बातचीत बंद हो गई, वो जब कभी अपनी मां को फोन लगाती तो फोन या तो श्रद्धानंद उठाता या फिर घर में मौजूद कोई अन्य व्यक्ति। ऐसे में एक रोज अचानक से सबा अपनी मां से मिलने के लिए बेंगलुरू आ गई और उसे निराशा ही मिली।घर में शकेरेह नहीं थी। सबा ने श्रद्धानंद से अपनी मां के बारे में पूछा तो उसने गोलमोल जवाब दिया और कहा कि शकेरेह का न्यूयॉर्क में इलाज चल रहा है और वह गर्भवती है। श्रद्धानंद की बातों पर सबा को भरोसा नहीं हो रहा था। ऐसे में उसने अपनी तरफ से छानबीन करने की कोशिश की फिर भी मां के बारे में कुछ भी नहीं पता लगा पाई। अंततः जून 1992 को सबा ने अपनी मां की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। सबा की शिकायत पर पुलिस ने छानबीन की, पर कामयाबी नहीं मिली।हालांकि, दो साल बाद एक पुलिस के एक सिपाही को शराब के ठेके में एक अहम सुराग मिला था। दरअसल, उसने वहां पर नशे में धुत्त एक व्यक्ति को यह कहते हुए सुन लिया था कि शकेरेह जिंदा नहीं है। जिसके बाद पुलिस ने शराबी को धरदबोचा और पूछताछ की तो पता चला कि श्रद्धानंद ने बेरहमी के साथ शकेरेह को दफना दिया। यह सुनकर पुलिस के भी होश उड़ गए थे। कहा जाता है शाकरेह की हत्या 28 अप्रैल, 1991 को ही हो गई थी। मारने से पहले शकेरेह को नशा दिया गया था। इसके बाद गद्दे में लपेटकर उसको एक बक्से में बंद करके दफना दिया गया था। जब शकेरेह का कंकाल बाहर निकाला गया तो क्रूरता की तमाम परते एक के बाद एक खुलने लगी और पुलिस ने तत्काल प्रभाव से श्रद्धानंद को गिरफ्तार कर लिया।—-