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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: अदालतों में महिलाओं पर आपत्तिजनक शब्दों का नहीं होगा प्रयोग

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों में महिलाओं के लिए इस्तेमाल होने वाले आपत्तिजनक शब्दों पर रोक लगाने के लिए बड़ा कदम उठाया है। इसके तहत शीर्ष कोर्ट ने एक हैंडबुक लॉन्च की है। यह हैंडबुक न्यायाधीशों को अदालती आदेशों और कानूनी दस्तावेजों में अनुचित लिंग शब्दों के इस्तेमाल से बचने में मार्गदर्शन करेगी।

बुधवार को जब सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए आई तभी सीजेआई ने इस हैंडबुक के अनावरण की घोषणा की। इस हैंडबुक में लैंगिक रूढिवादिता प्रदर्शित करने वाले शब्दों की शब्दावली है। इसमें इनकी जगह पर वैकल्पिक शब्द और वाक्यांश सुझाए गए हैं, जिनका उपयोग किया जा सकता है। इसे लेकर एक बयान भी जारी किया गया है। इसमें कहा गया है कि हैंडबुक महत्वपूर्ण मुद्दों, विशेषकर यौन हिंसा से जुड़े मुद्दों पर प्रचलित कानूनी सिद्धांत को भी समाहित करती है। इसमें कहा गया है कि हैंडबुक का लॉन्च एक अधिक न्यायसंगत और न्यायसंगत समाज की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।

30 पन्नों के इस हैंडबुक में इस बात पर प्रकाश डाला है कि यदि जज हानिकारक रूढ़िवादिता पर भरोसा करते हैं तो इससे कानून के उद्देश्य और निष्पक्ष अनुप्रयोग में विकृति आ सकती है और इससे भेदभाव और बहिष्कार बन रह सकता है। हैंडबुक में लिखा गया है, किसी महिला के चरित्र या उसके पहने हुए कपड़ों पर आधारित धारणाएं यौन संबंधों के साथ-साथ महिलाओं के व्यक्तित्व में सहमति के महत्व को कम करती हैं।