नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 173 (2) के तहत पेश की गई पुलिस रिपोर्ट अभियोजन, बचाव पक्ष और अदालत के नजरिये से बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं। न्यायालय ने इस बात पर गौर किया कि जांच अधिकारी अक्सर आरोप पत्र या पुलिस रिपोर्ट पेश करते समय इसके प्रविधानों का पालन नहीं करते हैं।
शीर्ष अदालत ने मंगलवार को अंतिम रिपोर्ट के लिए प्रविधानों को ध्यान में रखते हुए निर्देश जारी किए हैं। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 173 जांच पूरी होने पर पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट से संबंधित है। जबकि धारा 173 (2) में कहा गया है कि पुलिस रिपोर्ट पूरी होने पर थाने का प्रभारी अधिकारी उस पर अपराध का संज्ञान लेने के लिए उसे मजिस्ट्रेट को भेजेगा। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने कहा कि हम धारा 173 (2) को लेकर ज्यादा चिंतित हैं। हमने पाया कि जांच अधिकारी आरोपपत्र या पुलिस रिपोर्ट दाखिल करते समय उसके प्रविधानों की जरूरतों का पालन नहीं करते हैं। जांच अधिकारी का प्रविधानों का कड़ाई से पालन करना जरूरी है। पालन नहीं करने से अदालत में कई कानूनी मुद्दे जन्म लेते हैं।
पीठ ने कहा कि जांच पूरी होने पर पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट में पार्टियों के नाम, सूचना की प्रकृति, मामले की परिस्थितियों से परिचित व्यक्तियों के नाम, कोई अपराध किया गया है या नहीं, अगर हां तो किसने किया शामिल होंगे। रिपोर्ट में यह भी बताना होगा कि आरोपित को गिरफ्तार किया गया है या मुचलके पर रिहा किया गया है। अगर रिहा किया है तो जमानतदारों के साथ किया। जहां जांच यौन उत्पीडऩ के अपराधों से संबंधित है, वहां रिपोर्ट में जिक्र होना चाहिए कि महिला की मेडिकल जांच की रिपोर्ट जोड़ी है या नहीं। अगर जांच पूरी होने पर आरोपित को मजिस्ट्रेट के पास भेजने के पर्याप्त सुबूत या उचित आधार नहीं मिलते, तो प्रभारी पुलिस अधिकारी को सीआरपीसी की धारा 169 के अनुपालन के बारे में स्पष्ट रूप से बताना होगा।