नईदिल्ली। वैज्ञानिकों ने हमारी आकाशगंगा के सबसे शुरुआती निर्माण खंडों की पहचान की है। एक शोध के अनुसार, दोनों निर्माण खंड 12-13 अरब साल पुराने हैं। यह तकरीबन उसी समय के हैं, जब ब्रह्मांड की आकाशगंगाओं का निर्माण शुरू हुआ था। तारों के इन समूहों को शक्ति और शिव नाम दिया गया है।
खगोलविदों ने कहा कि ये निष्कर्ष एक प्रारंभिक बस्ती के निशान खोजने के बराबर हैं जो बड़े वर्तमान शहर में विकसित हुआ। शोधकर्ताओं के अनुसार माना जाता है कि आकाशगंगा का निर्माण छोटी आकाश गंगाओं के विलय से हुआ। जब आकाश गंगाएं टकराती हैं तो तारों के समूह मिलते हैं। अधिकांश तारे अपने मूल आकाशगंगा के बुनियादी गुण बनाए रखते हैं, जो सीधे उनकी मूल आकाशगंगा की गति और दिशा से जुड़े होते हैं।
द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर एस्ट्रोनॉमी, जर्मनी की शोध टीम ने तारों के समूह के डाटा का विश्लेषण किया। पाया गया कि आकाशगंगाओं के विलय के दौरान दो अलग-अलग तारा समूह बने। शोध की सह-लेखिका ख्याति मल्हान ने इन दो संरचनाओं को शक्ति और शिव नाम दिया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि दो अलग-अलग आकाशगंगाओं से संबंधित तारों के दो समूह शक्ति और शिव तारों की कोणीय गति आकाशगंगा के केंद्र में स्थित तारों की तुलना में अधिक थी। इन तारों में धातु की मात्रा कम थी, जो यह दर्शाता है कि इनका निर्माण बहुत समय पहले हुआ था। नए तारों में धात्विक तत्व अधिक होते हैं। अपने विश्लेषण के लिए शोधकर्ताओं ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के गाइया उपग्रह द्वारा उपलब्ध कराए गए डाटा का उपयोग किया और इसे यूएस स्लोअन डिजिटल स्काई सर्वे के तारों के डाटा से मिलान किया।
अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ (आईएयू) ने भारतीय खगोल विज्ञानी प्रोफेसर जयंत मूर्ति के नाम पर क्षुद्रग्रह का नाम रखा है। मूर्ति 2021 में भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) से सेवानिवृत्त हुए थे। तब से संस्थान में वह मानद प्रोफेसर हैं। आईएयू ने 18 मार्च को घोषणा की कि ब्रह्मांड में अल्ट्रावायलेट बैकग्राउंड रेडिएशन का अध्ययन करने के लिए नासा के न्यू होराइजन्स साइंस टीम में जयंत मूर्ति के उल्लेखनीय कार्यों के सम्मान में क्षुद्रग्रह 2005 ईएक्स 296 को (215884) जयंतीमूर्ति नाम दिया गया है। न्यू होराइजन्स को नासा ने लॉन्च किया था। यह 2015 में प्लूटो के पास से गुजरा। मूर्ति ने कहा, मैं अल्ट्रावायलट बैकग्राउंड रेडिएशन पर काम कर रहा हूं। जब से मैंने नील आर्मस्ट्रांग को चंद्रमा पर उतरते देखा है तब से मुझे खगोल विज्ञान में रुचि रही है। मेरे नाम के क्षुद्रग्रह को देखने में सक्षम होना शानदार अहसास है।
जैसा कि आप जानते हैं, वहां बहुत सारे क्षुद्रग्रह हैं। गैर-विज्ञानियों के नाम पर भी क्षुद्रग्रह हैं। शतरंज के ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद के नाम पर भी एक क्षुद्रग्रह है। जयंतमूर्ति क्षुद्रग्रह को पहली बार 2005 में अमेरिका के एरिजोना में किट पीक नेशनल आब्जर्वेटरी में एमडब्ल्यू बुई ने खोजा था। यह प्रत्येक 3.3 साल में एक बार मंगल और बृहस्पति के बीच स्थित कक्षा में सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाता है। आईआईए की निदेशक अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम ने जयंत मूर्ति के नाम पर क्षुद्रग्रह का नामकरण किए जाने पर खुशी जताई है। मूर्ति के अलावा, आइआइए के पूर्व निदेशक एमके वेनु बप्पू और जेसी भट्टाचार्य के नाम पर भी क्रमशः 2596 वेनु बप्पू (1979 केएन) और 8348 भट्टाचार्य (1988 बीएक्स) क्षुद्रग्रह हैं।