न्यूज डेस्क। काजोल और कृति सेनन स्टारर फिल्म ‘दो पत्ती’ का ट्रेलर जब सामने आया तब देखने वालों के मन में सवाल था कि आखिर ये फिल्म किस बारे में होगी। सस्पेंस से भरी दो जुड़वां बहनों की कहानी, एक पुलिस इंस्पेक्टर और एक हैंडसम शाहीर शेख को साथ मिलकर ऐसा क्या बनाया गया है, जिसे देखने का लालच फैंस के मन में आ रहा है। यही सवाल मेरे भी मन में था, जब मैंने ‘दो पत्ती’ का ट्रेलर देखा था। ट्रेलर देखकर लगा था कि ये कहानी दो बहनों और उनके बीच आए एक हैंडसम डूड के बारे में होगी, जो कि है भी, लेकिन चीजें जितनी दिख रही हैं उससे ज्यादा उलझी हुई हैं।
क्या है फिल्म की कहानी?
कहानी की शुरुआत होती है झारखंड के छोटे गांव देवीपुर से, जहां इंस्पेक्टर विद्या ज्योति (काजोल) का ट्रांसफर हुआ है। जज पिता और वकील मां की बेटी विद्या उर्फ वीजे, न्याय और कानून को आम लोगों से अलग तराजू में तोलती है। पेशे से पुलिसवाली होने के साथ-साथ वो वकील भी है। वकालत की डिग्री पाने के बाद उसने अपने सगे भाई को भी नहीं छोड़ा था। उसे भी उसकी गलती के चलते जेल की हवा खिला दी थी। एक शाम थाने में आई मारपीट की आवाज की शिकायत को सीरियस लेकर वीजे एक ऐसी गुत्थी में फंस जाती है, जो उसके दिन का चैन और रातों की नींद उड़ा देगी।
शिकायत करने वाले का पता लगाने पहुंची वीजे की मुलाकात सौम्या (कृति सेनन) और उसकी मां जी (तन्वी आजमी) से होती है। सौम्या के चेहरे पर चोट से पता चलता है कि उसे किसी ने मारा है, लेकिन वो कहती है कि कैबिनेट से उसे चोट लगी है। सौम्या की चिंता में वीजे उसका पीछा शुरू करती है, जिसकी वजह से उसकी मुलाकात सौम्या की जुड़वां बहन शैली (कृति सेनन) से होती है।
सीधी-सादी सौम्या की बहन शैली एकदम उससे अलग है- बिगड़ैल और बेपरवाह. मां जी से वीजे को पता चलता है कि दोनों बहनों को अमीर घर के गुस्सैल लड़के ध्रुव से प्यार हो गया था। हरियाणा के मंत्री के बेटा ध्रुव का अपनी पैंट और गुस्से दोनों पर काबू नहीं है। दोनों बहनों के बीच झूलने के बाद ध्रुव, सौम्या को अपनी बीवी चुनता है। प्यार में सौम्या खुशी-खुशी ब्याह तो रचा लेती है, लेकिन फिर उसके साथ ही वही होता है, जो एक वक्त पर उसकी मां के साथ हुआ करता था।
हर छोटी-बड़ी गलती, बात और बिना किसी खास कारण के सौम्या को रोज ध्रुव के गुस्से का शिकार होना पड़ता है। उसकी बहन शैली उसे ड्रामा क्वीन मानती है और ध्रुव एक क्लासिक एब्यूसिव हसबैंड की तरह उसपर हाथ उठाने के बाद उससे माफी मांग लेता है। जी हां, रोमांस और सस्पेंस से भरी दिखने वाली ‘दो पत्ती’ असल में घरेलू हिंसा के दर्द को दिखाती है।
हद तब हो जाती है जब ध्रुव एक शाम सौम्या की जान ही ले लेता है। तब विद्या ज्योति अपने हाथों में बात लेती है और ध्रुव के खिलाफ बतौर वकील सौम्या का केस लड़ती है, लेकिन एक बात जो वीजे नहीं जानती वो ये है कि पूरा सच उसकी आंखों के सामने भी नहीं है। दोनों जुड़वां बहनों की जिंदगी का राज क्या है? ध्रुव से पिटने वाली सौम्या को कभी न्याय मिलेगा या नहीं और एक घरेलू हिंसा सह रही औरत के शरीर के साथ-साथ उसके दिमाग पर इसका कितना बुरा असर होता है, ये सब आपको फिल्म में देखने को मिलेगा।
काजोल-कृति से बेहतर हैं शाहीर
परफॉरमेंस की बात करें तो काजोल का काम फिल्म में ठीकठाक है। उन्होंने देसी पुलिसवाली बनने की काफी कोशिश की है, लेकिन उसमें पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाईं। कृति सेनन को ‘दो पत्ती’ के जरिए पहली बार डबल रोल में देखा जा रहा है। उन्होंने अपने रोल से ये साबित कर दिया है कि इंडस्ट्री में उनका फ्यूचर ब्राइट है। शैली और सौम्या के रूप में आपको कृति के दो रूप साथ देखने को मिलते हैं और तब आपको समझ आता है कि अपने क्राफ्ट में वो कितना आगे निकल आई हैं। हालांकि एक एक्टर जो पूरी तरह से आपका दिल जीतकर काजोल और कृति सेनन को इग्नोर करने पर मजबूर कर देता है, वो हैं शाहीर शेख।
शाहीर शेख को आप सभी ने पहले टीवी पर देखा होगा। ‘बेस्ट ऑफ लक निक्की’ के चॉकलेट बॉय रोहन, ‘महाभारत’ के अर्जुन और ‘नव्या’ के अनंत जैसे अलग-अलग रोल्स में उन्हें देखा गया है, लेकिन ऐसा शायद ही कभी सोचा होगा कि एक गुस्सैल और एब्यूसिव पति का किरदार निभाते हुए शाहीर पर्दे पर नजर आएंगे। ध्रुव के किरदार में शाहीर का काम कमाल है। उनका कृति संग रोमांस भी देखने लायक है और बिगड़ैल अंदाज भी। अपने हर सीन में शाहीर शेख शाइन करते हैं।
कहां रह गई कमी-क्या है खास?
फिल्म में एक सबसे दर्दनाक सीन है, जिसमें सौम्या और ध्रुव के बीच कुछ बात के बाद आपको ध्रुव का असली चेहरा देखने को मिलता है, उसे जिस तरह से फिल्माया गया है और जिस तरह की एक्टिंग दोनों सितारों ने की है, वो सही में रोंगटे खड़े करने वाली है, वही पल है जो पिक्चर के खत्म होने के बाद भी आपका पीछा नहीं छोड़ता और आपके दिमाग में घूमता रहता है।
फिल्म की कहानी को कनिका ढिल्लों ने लिखा है। कनिका की कहानियों की दिक्कत यही है कि वो बहुत प्रेडिक्टेबल होती हैं। ‘दो पत्ती’ की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। आप पिक्चर को देखते हुए समझ सकते हैं कि आगे क्या होने वाला है या हो सकता है। फिल्म के डायरेक्शन में बहुत-सी कमियां हैं। बहुत-से सीन्स काफी बनावटी लगते हैं। इसमें कोर्टरूम ड्रामा दिखाने की कोशिश की गई है, जो काफी निराशाजनक है। वो पूरा सीक्वेंस आपको अपने साथ बांधने में नाकाम होता है. फिल्म का म्यूजिक ठीकठाक है।