HEALTH . अगर आपका वज़न तेज़ी से बढ़ने लगे या घट जाए तो सावधान हो जाएं क्योंकि ये थायराइड रोग हो सकता है। क्या है इस बीमारी की वजह, क्या हैं इसके लक्षण कैसे होता है-
क्या है थायराइड?
हमारे शरीर के अंदर कई तरह की थैलियां होती हैं जिसे ग्रंथि (Gland) कहा जाता है। शरीर में मौजूद इन ग्रंथियोंसे हॉरमोन्स तथा एनज़ाइम्स निकलते रहते हैं। हमारे गले में पायी जाने वाली ऐसी ही एक ग्रंथि है जिसे थायराइड ग्रंथि (Thyroid Gland) कहा जाता है। यह ग्रंथि एक ह़ॉरमोन बनाती है जिसे थायरॉक्सीन हॉरमोन्स (Thyroxine Hormones) कहा जाता है। यह ह़ॉरमोन्स हमारे शरीर के अंगों और तंत्रों के काम करने के लिए बहुत ज़रुरी होती है। भोजन से मिलने वाली उर्जा का इस्तेमाल करने के लिए थायराइड हॉरमोन मदद करता है। लेकिन अगर यही हॉरमोन्ससामान्य से ज्यादा या कम बनने लगे तो थायराइड की बीमारी हो जाती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि ये बीमारी महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा देखने को मिलती है। अगर आंकड़ों की बात करें तो लगभग हर दस व्यक्तियों में से नौ महिलाओं और एक पुरुषको ये बीमारी होती है। अधिकतर थायराइड की बीमारी बीस से चालीस साल की उम्र की महिलाओं में देखने को मिलती है।
थायराइड मुख्यत: दो तरह का होता है, एक मेडिकल और दूसरा सर्जिकल थायराइड। अगर मेडिकल थायरइड की बात करें तो इसे भी दो भागों में बांटा जा सकता है। जब थायराइड ग्रंथि में हॉरमोन्स सामान्य से कम बनने लगे तो उसे हाइपोथायराइडिज्म (Hypothyroidism) कहा जाता है। वहीं अगर इससे उलट हॉरमोन्स की मात्रा सामान्य से ज्यादा बनना शुरु हो जाए तो उसे हाइपरथायराइडिज्म (Hyperthyroidism) कहा जाता है।
क्या है थायराइड के लक्षण?
हाइपोथायराइडिज्म (Hypothyroidism) में हॉरमोन्स सामान्य से कम बनते हैं जिसकी वजह से मरीज़ में कई तरह के लक्षण दिखाई देते हैं जैसे कि मोटापा होना, थकान और चिड़चिड़ापन रहना, बालों का झड़ना, पीरियड्स में समस्या और बांझपन भी हो सकता है। वहीं हाइपरथायराडिज्म (Hyperthyroidism) में हॉरमोन्स सामान्य से ज्यादा बनते हैं और इसकी वजह से मरीज़ का वज़न कम होना शुरु हो जाता है। इसके अलावा रोगी को घबराहट, बेचैनी के साथ ही ज्यादा पसीना भी आता है। पीरियड्स की समस्या के अलावा हड्डियां भी कमज़ोर होने लगती हैं।
हाइपोथायराइडिज्म का इलाज दवाइयों से किया जाता हैजिसे हॉरमोन्स रिप्लेसमेंट थेरेपी (Hormones Replacement Therapy) कहते हैं। इस तरह के उपचार में मरीजों को दवाईयां दी जाती हैं जिसमें थायराक्सीन हॉरमोन्स (Thyroxine Hormones) मौजूद होता है और वह ग्रंथि में कम बन रहे हॉरमोन्स की कमी को पूरा करता है। कभी-कभी किसी मरीज़ को ये दवाइयां ज़िंदगी भर खानी पड़ सकती हैं वहीं कुछ मामलों में एक वक्त के बाद दवाइयां बंद भी कर दी जाती हैं। अगर हाइपरथायराइडिज्म की बात करें तो इसका इलाज तीन तरह से किया जा सकता है जिसमें दवाइयां, रेडियो आयोडीन थेरेपी और सर्जरी शामिल है। ज्यादातर मरीज़ों का इलाज दवाइयों और रेडियो आयोडीन थेरेपी से ही किया जाता है लेकिन अगर रोगी को घेंघा (Goitre) यानि गले में गांठ या गिल्टी हो जाए तो ऐसे में सर्जरी करवाना ज़रुरी होता है। कभी-कभी मरीज़ों को दवाइयों द्वारा इलाज के बाद रेडियो आयोडीन थेरेपी भी दी जाती है। दवाइयों के इस्तेमाल से लगभग 90 प्रतिशत लोगों में यह बीमारी ठीक हो जाती है, सिर्फ 10 प्रतिशत लोगों में ही यह बीमारी दोबारा हो सकती है।
क्या होता है थायराइड कैंसर और कैसे होता है इसका इलाज?
कभी-कभी थायराइड की ग्रंथियों में गांठ पड़ जाती है जिसे घेंघा या गिल्टी कहा जाता है। गांठ पड़ने पर इसकी सर्जरी कराना ज़रुरी हो जाता है। सर्जरी से पहले कई तरह की जांच की जाती है जिससे गांठ के बारे में पता लगाया जा सके कि वह किस प्रकार का है। लगभग 95 प्रतिशत गांठ सामान्य घेंघा होती हैं जिसका इलाज आसानी से किया जा सकता हैजबकि सिर्फ़ 5 प्रतिशत मरीज़ों में ये गिल्टी एक ख़तरनाक रुप ले लेती है जिसे थायराइड कैंसर कहा जाता है। ये कैंसर पांच तरह के हो सकते हैं जिसका उपचार अलग-अलग तरह से किया जाता है। खास तौर पर थायराइड कैंसर को सर्जरी के ज़रिए ठीक किया जाता है।यह भी देखा गया है कि सर्जरी से मरीज़ोंको झिझक होती है क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि सर्जरी के बाद उनके गले में निशान पड़ जाएंगे।
सर्जरी के दौरान थायराइड ग्रंथि के पीछे मौजूद नस को क्षति पहुंचने की संभावना बनी रहती है जिसकी वजह से हो सकता है कि मरीज़ की आवाज़ में कोई बदलाव आए। इसके अलावा कैल्शियम में कमी हो सकती है इसलिए ये ज़रुरी है कि सर्जरी केवल एक्सपर्ट डॉक्टर ही करें। कई लोग सर्जरी के बाद होने वाले निशान के बारे में सोचने लगते हैं। अगर मरीज़ का ट्यूमर छोटा है तो 3-4 सेंटीमीटर का छोटा सा निशान गले पर बन सकता है। लेकिन यदि ये गलने वाले टांके सावधानी से लगाएं जांए तो तीन से चार महीनों में ये निशान मिट जाते हैं। कुछ मरीज़ अपनी गर्दन पर किसी तरह के टांकों के निशान नहीं चाहते हैं, ऐसे लोगों के लिए एंडोस्कोपिक थायराइड सर्जरी (Endoscopic Thyroid Surgery) एक अच्छा विकल्प है। इस तरह की सर्जरी में एंडोस्कोप्स को मुंह, कांख या फिर छाती के ज़रिए अंदर डालकर गिल्टी को निकाला जाता है। हालांकि इस तरह की सर्जरी में समय ज्यादा लगता है और ये एक महंगा इलाज है।
थायराइड के मरीज़ कैसे रखें अपना ख्याल?
थायराइड के मरीज़ों को अपनी जीवनशैली में बदलाव करना बहुत ज़रुरी है। उन्हें अपने खाने-पीने की चीज़ों का ख़ास ख्याल रखना चाहिए। थायराइड के मरीजों को सब्ज़ियों में गोभी, पत्ता गोभी, ब्रोकली और सोयाबीन खाने से परहेज़ करना चाहिए। साथ ही तला-भुना खाने से भी बचना चाहिए। वहीं थायराइड के मरीज़ों को खाने में कैल्शियम और आयोडीन युक्त चीज़ें जैसे दूध, पनीर, दही, छाछ वगैरह ज्यादा मात्रा में लेना शुरु कर देना चाहिए। इसके अलावा हफ्ते में पांच दिन कम से कम 30 मिनट तक तेज़ चलना, जॉगिंग और दूसरी कार्डियो एक्सरसाइज़ करना बहुत ज़रुरी है ताकि मोटापा ना बढ़े।
क्या है डॉक्टर की सलाह?
शुरुआत में ही थायराइड की पहचान करना ज़रुरी है। अगर आपका वज़न अचानक बढ़ने या घटने लगे तो डॉक्टर को ज़रुर दिखाना चाहिए। इसके अलावा गले में किसी भी तरह की गांठ या गिल्टी दिखे और गले में दर्द हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं ताकि बीमारी बढ़ने से पहले ही उसका सही इलाज किया जा सके।