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नदी में खुदाई कर रहा था श्रमिक, तभी आने लगी खट-खट की आवाज, पास जाकर देखा तो उड़े होश

पाकुड़। बालू खुदाई के दौरान बुधवार को बांसलोई नदी के कुलबोना बालू घाट से मिली काले पत्थर की प्रतिमा ऐतिहासिक महत्व की हो सकती है। यह मूर्ति कितनी पुरानी है इसका सही आंकलन तो पुरातत्व विभाग की जांच के बाद होगी, परंतु भूगर्भ विभाग के विशेषज्ञ की मानते को यह मूर्ति दो हजार साल पुरानी हो सकती है।

पुरातत्व विभाग इसे सातवीं सदी की होने की आशंका जता रहा है। इसी नदी में करीब एक किलोमीटर की दूरी पर 200 साल पहले भी काले पत्थर की मां काली की मूर्ति बालू खनन के दौरान ही मिली थी। जिसे गांव के लोगों ने स्थानीय बुढ़ाबाबा शिव मंदिर में स्थापित किया है।

बालू खुदाई के दौरान मिली मूर्ति

कुलबोना गांव के मजदूर संदीप लेट ने बताया कि जहां मूर्ति मिली है, वहां पर वह अकेले बालू खुदाई कर रहा था। इसी दौरान उसका बेलचा (बालू उठाने वाला उपकरण) बार-बार एक पत्थर से टकरा रहा था। उसने सोचा कि पत्थर है और हाथ से अकेले उठाने का प्रयास कर रहा था, परंतु उठा नहीं पा रहा था तो उसने साथी मजदूर पृथ्वी लेट को पत्थर हटाने में मदद के लिए बुलाया।

पत्थर में हाथ देते ही दोनों को एहसास हुआ कि यह पत्थर नहीं है। तब दोनों सावधानी पूर्वक बालू हटाने लगे तो देखा कि एक काले पत्थर की मूर्ति सीधी पड़ी हुई है। इस दौरान गांव के दर्जनों मजदूर पहुंच गए और मूर्ति के पास से बालू हटाने लगे। इसके बाद ग्रामीणों को मूर्ति हाथ लगी। ग्रामीण इसे मां दुर्गा की मूर्ति बता पूजा करने लगे। कुछ देर बाद मूर्ति मिलने की खबर पूरे क्षेत्र में फैल गई। बाद ने महेशपुर पुलिस ने मूर्ति जब्त कर इसे थाने में सुरक्षित रखा है।

इंटरनेट मीडिया पर वायरल हो रही मूर्ति की तस्वीर

बुधवार को बालू खुदाई के दौरान मिली मूर्ति की तस्वीर और वीडियो इन दिनों इंटरनेट मीडिया पर वायरल हो रही है। लोग मूर्ति को लेकर तरह तरह के कयास लगा रहे हैं। मूर्ति मिलने के बाद से लोगों की आस्था भी उबाल ले रही है। लोग यह जानने को उत्सुक है कि यह मूर्ति बांसलाई नदी में कहां से आई। यह कितनी पुरानी है। इसकी ऐतिहासिकता क्या है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

भूगर्भ शास्त्री डा. प्रो. रणजीत कुमार सिंह ने बताया कि यह मूर्ति आग्नेय चट्टान की बनी है। उन्होंने बताया कि मूर्ति मिलने के बाद उन्होंने नई दिल्ली के पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञ को फोटो भेजकर इसकी चर्चा की। जिसमें संभावना व्यक्त की गई कि यह सातवीं सदी की हो सकती है। पुरातत्व विभाग के जानकार इसे दुर्गा नहीं पार्वती की मूर्ति मान रहा है। जल्द ही विभाग एक टीम जांच को भेज सकता है।