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हजारों साल पुराने वन को बचाने का प्रयास होगा तेज, जंगली जीवों की संख्या भी बढ़ेगी

रांची। झारखंड के वन अपनी सघनता और विविधता की वजह से पूरे इको सिस्टम के लिए फिल्टर का काम कर रहे हैं। अलग राज्य बनने के बाद से वन का क्षेत्रफल सिमट रहा है। नए वर्ष में वन एवं पर्यावरण विभाग ने अति प्राचीन वन के संरक्षण के लिए योजना बनाई है। झारखंड के जंगलों में हजारों साल पुराने वृक्ष (मदर ट्री) की पहचान के लिए जैव विविधता के विशेषज्ञों की मदद ली जा रही है।

साहिबगंज के फासिल्स पार्क का संरक्षण भी वैज्ञानिक विधि से किया जाएगा। साल 2024 में बिरसा हरित ग्राम योजना के तहत 9,538 ग्राम पंचायतों में फलदार वृक्ष लगाए जाएंगे। इनसे पर्यावरण संरक्षण के साथ लोगों को स्वादिष्ट फल भी मिलेंगे। पर्यावरण संरक्षण विभाग ने राज्य की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए औद्योगिक क्षेत्र में होने वाले प्रदूषण को कम करने के मानक को साल 2024 में ज्यादा सख्ती से लागू करने का फैसला किया है।

पीटीआर से बाहर बिछेगी रेलवे लाइन

50 साल पुराने पलामू टाइगर रिजर्व में लातेहार-डाल्टनगंज सेक्शन का करीब नौ किलोमीटर क्षेत्र रेलवे लाइन का है। तेज रफ्तार में रेल के गुजरने से वन्य जीवों को परेशानी होती है। कई बार इनकी मृत्यु भी हो जाती है। इस वर्ष इस रेल लाइन को वन्य क्षेत्र से बाहर कर दिया जाएगा। इसके लिए केंद्र सरकार से प्रशासनिक स्वीकृति मिल चुकी है।

40 एकड़ के ग्रीन लैंड को चिह्नित कर पीटीआर में फेंसिंग कर दिया गया है। इनमें हिरणों को सुरक्षित वातावरण में रखा जाएगा। बाद में इन हिरणों को बेतला समेत आठ वन प्रक्षेत्र में आजाद विचरण करने के लिए छोड़ दिया जाएगा। उम्मीद है कि पीटीआर क्षेत्र में हो रहे इस प्रयोग से बाघों को प्राकृतिक रुप से भोजन की उपलब्धता होगी और उनका फिर से अधिवास प्रारंभ हो जाएगा।

बेतला में दिखा भेड़िया

दो जनवरी 2024 यानि साल के दूसरे दिन बेतला में लंबे समय के बाद भेड़िया को स्वच्छंद विचरण करते हुए देखा गया है। इसकी तस्वीर वन विभाग के कैमरे में कैद हुई है। वन्य जीवों के संरक्षण के लिए यह महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में एशिया का इकलौता वुल्फ (भेड़िया) प्रजनन केंद्र है। उम्मीद है कि बेतला और आसपास के जंगलों में नए साल में वन्य जीवों की संख्या बढ़ेगी।

औद्योगिक प्रदूषण पर लगेगी रोक

झारखंड में कोल उत्पादन क्षेत्र में प्रदूषण की समस्या रहती है। इसे रोकने के लिए कोल इंडिया ने गंभीर कदम उठाए हैं। कोयला ट्रांसपोर्टेशन और खनन के दौरान उड़ने वाले धूल को रोकने के लिए वाहनों की जीपीआरएस से मानिटरिंग की जाएगी। साथ ही खनन क्षेत्र में नए पौधे लगाए जाएंगे।