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कोरबा छत्तीसगढ़

नहीं मिला वाहन, मासूम बेटे का शव लेकर पिता ने बाइक से किया 60 किमी का लंबा सफर

कोरबा। मानव संवेदनाओं को झकझोरकर रख देने वाला दो मामला जिले में विगत सोमवार को सामने आया है। इन दोनों मामलों ने स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोलकर रख दी है। बेहतर सुविधा का दावा करने वाले प्रशासनिक अधिकारियों की घटनाओं ने आंखें खोल दी है। एक तरफ वाहन उपलब्ध नहीं होने की वजह से बेबस पिता को बाइक में बच्चे के शव को लेकर 60 किलोमीटर का सफर करना पड़ा, वहीं दूसरी ओर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में स्थानीय स्वास्थ्य कर्मियों की अदूरदर्शिता की वजह से जन्म लेते ही नवजात को जान गंवानी पड़ी।

सोमवार की सुबह एक मां अपने डेढ़ साल के बच्चे अश्विनी को लेकर खेत गई थी। खेत की मेड़ में बच्चे को छोड़कर वह निंदाई के काम में व्यस्त हो गई। खेत से लगी डबरी में वर्षा के कारण पानी भरा हुआ था। खेलते-खेलते अश्विनी डबरी की ओर चला गया। मां की भी सुध बच्चे की ओर नहीं रही। मां ने थोड़ी देर बाद जब मेड़ की ओर देखा तो बच्चा गायब था। वह खेत से काम छोड़कर मेड़ की ओर दौड़ी। तब तक बहुत देर हो चुकी था। अश्विनी डबरी में डूब चुका था। मां उसे उठाकर अस्पताल ले जाने के लिए दौड़ पड़ी। आनन फानन में पिता दरश बच्चे को लेकर लेमरू प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचा। यहां डाक्टरों ने परीक्षण के बाद उसे मृत घोषित कर दिया। पोस्टमार्टम की प्रक्रिया पूरी की जानी थी, लेकिन स्थानीय अस्पताल में इसकी सुविधा नहीं थी। शव को जिला अस्पताल के मर्च्युरी ले जाना था।

दरशराम ने स्वास्थ्य कर्मियों से शव वाहन उपलब्ध कराने की मांग की। पिता का दर्द उस समय दोगुना हो गया जब शव के लिए वाहन उपलब्ध कराने में विभाग ने असमर्थता जता दी। मजबूर दरश को अपने दुधमुंहे बच्चे के शव को प्लास्टिक में लपेटकर 60 किलोमीटर मोटर साइकिल से सफर कर जिला अस्पताल आना पड़ा। तब कहीं जाकर अंत्येष्टि के लिए शव को पुलिस ने सुपुर्दनामा किया। पूरी घटना क्रम ने चिकित्सा विभाग की कलई खोल दी है।

संजीवनी 108 की भी सुविधा नहीं

जिले में संजीवनी 108 के 12 वाहन उपलब्ध कराए गए थे, जिसमें तीन खराब हो चुके हैं। स्वीकृत वाहनों में एक वाहन की तैनाती लेमरू अस्पताल के लिए किया गया है। जोकि वर्तमान में खराब पड़ा हुआ है और इसकी जगह कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई है। दूरस्थ गांव होने की वजह से 112 की भी यहां तैनाती की जा सकती है, लेकिन वह भी नहीं की गई है। आपात स्थिति में लोगों को एंबुलेंस के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। स्थिति गंभीर और लंबी दूरी होने की वजह निजी वाहनों से ही मरीज को ले जाना पड़ता है।

सुविधाएं उपलब्ध कराने गंभीर नहीं प्रबंधन

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाएं तो है, लेकिन उसे उपलब्ध कराने के प्रति स्वास्थ्य प्रबंधन गंभीर नहीं है। प्रकाश का कहना हैं बच्चे की गंभीर दशा को देखते हुए उन्होने एंबुलेंस सुविधा की मांग की थी पर स्वास्थ्य कर्मियों कम दूरी का हवाला देते हुए आटो रिक्शा में ले जाने की सलाह दे दी। यदि बच्चे को एंबुलेंस सुविधा दी जाती तो वह जीवित होता।
जिला अस्पताल में 24 घंटे आक्सीजन युक्त वाहन उपलब्ध होने की बात कही जाती है, लेकिन बच्चे की मौत ने इस व्यवस्था की कलाई खोल कर रख दी है। जिला स्वास्थ्य अधिकारी एसएन केशरी ने कहा कि अस्पतालों में हुई दोनों ही घटनाओं की जानकारी मिली है। मामले में जांच के निर्देश दिए गए हैं। दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी। ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो इस दिशा में आवश्यक सुधार किया जाएगा।