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गरीबी कोई अपराध नहीं : कर्ज अदायगी का स्रोत न होने पर जेल भेजना कानून का उल्लंघन

जबलपुर। ’गरीबी कोई अपराध नहीं है, जिसके पास कर्ज अदायगी के लिए आय का कोई स्रोत न हो, उसे जेल भेजने का आदेश पारित कर दिया जाए। निष्पादन न्यायालय की इस टिप्पणी पर हाईकोर्ट का बयान सामने आया है। हाई कोर्ट ने अपने बयान में अधीनस्थ अदालत के इस आदेश को निरस्त कर दिया। साथ ही साफ किया कि गरीबी के कारण डिक्री संबंधी राशि का भुगतान करने में असमर्थता कोई अपराध नहीं है।

इस महत्वपूर्ण आदेश में हाई कोर्ट की जबलपुर एकलपीठ ने कानूनी सिद्धांत प्रतिपादित करते हुए निर्धारित किया कि निष्पादन न्यायालय विहित प्रविधानों का पालन करने में विफल रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि नोटिस जारी करने के बाद निष्पादन न्यायालय से डिक्रीधारक और उसके निष्पादन आवेदन के समर्थन में प्रस्तुत सभी साक्ष्यों व कथनों को गंभीरता से देखने-सुनने की उम्मीद की जाती है। इसके बाद सुनवाई का अवसर देने की आवश्यकता होती है, जिससे वह अदालत को यह समझाने की अनुमति दे सके कि उसे सिविल जेल में क्यों भेजा जाना चाहिए।

एससी ने दरिद्र नारायण वाले न्यायदृष्टांत का दिया हवाला

हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणियों के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के न्यायदृष्टांत का अंश दोहराया। जॉली वर्गीस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस भूमि (गरीबों की भूमि) में गरीब होना कोई अपराध नहीं है और किसी को जेल में डालने की प्रक्रिया द्वारा कर्ज वसूल करना कानून का बहुत बड़ा उल्लंघन है, जब तक कि उसके पर्याप्त साधनों के बावजूद भुगतान करने में उसकी जानबूझकर विफलता की न्यूनतम निष्पक्षता का सबूत न हो।

यह है पूरा मामला

याचिकाकर्ता कर्जदार ने टीकमगढ़ की एक कोर्ट द्वारा पारित आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसने याचिका में बताया कि उसका व्यवसाय बंद हो गया और उसके पास कर्ज चुकाने के लिए कोई संपत्ति नहीं है। अब वह नौकरी कर रहा है और मिलने वाले मानदेय से वह कर्ज का भुगतान करने की कोशिश करेगा।

प्रतिवादी ने आरोप लगाया था कि कर्जदार ने डिक्री पारित होने से पहले संपत्ति पत्नी और बेटे के नाम स्थानांतरित कर दी थी, जिससे इनकार करते हुए याचिकाकर्ता ने बताया कि उसके पास कोई संपत्ति थी ही नहीं तो वह स्थानांतरित कैसे कर सकता था। हाई कोर्ट ने रिकार्ड का विश्लेषण करने के बाद पाया कि निष्पादन अदालत ने जांच के माध्यम से यह निर्धारित करने की जहमत नहीं उठाई कि याचिकाकर्ता के पास कोई संपत्ति है या उसने मुकदमा लंबित रहने के दौरान अपनी पत्नी और बेटों के नाम पर संपत्ति ट्रांसफर की।

 

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