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जानें राम मंदिर के मुख्य पुजारी को कितनी मिलती है सैलरी, 1992 में मिलते थे मात्र 100 रूपए

यूपी /अयोध्या।  ट्रस्ट ने राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास से बढ़ती उम्र को  देखते हुए कार्य से मुक्ति का निवेदन किया। वह 34 साल से राममंदिर में पूजा-अर्चना का जिम्मा संभाल रहे हैं। आचार्य सत्येंद्र दास को  ट्रस्ट आजीवन वेतन देता रहेगा। मुख्य पुजारी पहले की तरह जब भी चाहेंगे, उनके राममंदिर में आने-जाने व पूजा-अर्चना करने पर किसी प्रकार की कोई रोक नहीं रहेगी।

पिछले 25 नवंबर को हुई रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की बैठक में यह निर्णय हुआ कि राममंदिर में पिछले 34 सालों से सेवा दे रहे आचार्य सत्येंद्र से कार्य से मुक्ति का निवेदन किया जाए। सत्येंद्र दास 87 साल के हो गए हैं। उनका स्वास्थ्य भी अब अनुकूल नहीं रहता, इसलिए उनसे सेवा से मुक्ति का निवेदन किया जाना चाहिए। यह भी निर्णय हुआ कि अभी उन्हें जो पारिश्रमिक यानी वेतन दिया जा रहा है, वह वेतन आजीवन दिया जाएगा। इस पर ट्रस्ट के सभी पदाधिकारियों की सहमति भी मिल गई।
अब इतना मिल रहा वेतन-  आचार्य सत्येंद्र दास 1 मार्च 1992 से राममंदिर में मुख्य अर्चक के रूप में सेवा दे रहे हैं। शुरुआत में उन्हें 100 रुपये प्रति माह वेतन दिया जाता था। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद उनका वेतन बढ़कर 38500 रूपए हो गया है। आचार्य सत्येंद्र दास को यही वेतन आजीवन दिया जाता रहेगा।
इस समय राममंदिर में आचार्य सत्येंद्र दास सहित कुल 14 पुजारी सेवा दे रहे हैं। उनके साथ चार सहायक पुजारी भी लंबे समय से राममंदिर में कार्यरत हैं, जबकि नौ नए पुजारियों की नियुक्ति हाल ही में की गई है।

विध्वंस से लेकर सृजन तक के गवाह हैं सत्येंद्र दास- रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास बाबरी विध्वंस से लेकर राममंदिर के निर्माण तक के साक्षी रहे हैं। रामलला की भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा भी उन्होंने अपनी आंखों से देखी है। आचार्य सत्येंद्र दास ने टेंट में रहे रामलला की 28 साल तक उपासना-पूजा की जिम्मेदारी संभाली। इसके बाद करीब चार साल तक अस्थायी मंदिर में विराजे रामलला की सेवा मुख्य पुजारी के रूप में की। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से अभी तक वह मुख्य पुजारी के रूप में सेवा दे रहे हैं।

क्या कहते हैं आचार्य सत्येंद्र दास- मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा कि राममंदिर के ट्रस्टी आश्रम पर आए थे। स्वास्थ्य व बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए कार्य से मुक्ति का निवेदन किया है। कहा गया है कि जब इच्छा हो मंदिर जाएं, न हो तो न जाएं। ट्रस्ट ने यह भी कहा है कि जितना वेतन अभी मिलता है आजीवन देते रहेंगे। ट्रस्ट ने तो कार्यमुक्त कर ही दिया है, फिलहाल मैं अभी मंदिर जाता हूं, किसी प्रकार का रोकटोक नहीं है।