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Mahakumbh Mela 2025 : जानें कब और कहां होगा आयोजन, महाशिवरात्रि के दिन अंतिम शाही स्नान

नई दिल्ली। पौष माह की पूर्णिमा तिथि यानी 13 जनवरी 2025 को प्रयागराज में कुंभ मेले (Kumbh Mela) का आयोजन किया जाएगा। इस दिन शाही स्नान की शुरूआत होगी। महाशिवरात्रि के दिन अंतिम शाही स्नान के साथ ही मेला का समापन भी हो जाएगा। महाकुंभ मेला प्रयागराज में गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती नदी के तट पर किया जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह अद्वितीय आयोजन हर 12 साल बाद ही क्यों किया जाता है? दरअसल इस मेले के आयोजन के पीछे गहरी पौराणिक मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं…

कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का एक अद्वितीय धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन माना जाता है। यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हर 12 वर्षों में विशेष रूप से चार स्थानों- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस आयोजन में पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार पौष पूर्णिमा के दिन महाकुंभ आरंभ होगा और महाशिवरात्रि के साथ इसका समाप्त हो जाएगा। साल 2025 में महाकुंभ 13 जनवरी से आरंभ होगा और 26 फरवरी 2025 को समाप्त होगा।

महाकुंभ 2025 प्रमुख स्नान तिथियां- 13 जनवरी 2025: पौष पूर्णिमा (पहला शाही स्नान), 14 जनवरी 2025: मकर संक्रांति (दूसरा शाही स्नान), 29 जनवरी 2025: मौनी अमावस्या (तीसरा शाही स्नान),  3 फरवरी 2025: बसंत पंचमी (चौथा शाही स्नान),  12 फरवरी 2025: माघ पूर्णिमा (पांचवा शाही स्नान),  26 फरवरी 2025: महाशिवरात्रि (अंतिम शाही स्नान)।

नदियों में स्नान करना अत्यधिक शुभ-  कुंभ मेले में पवित्र नदियों में स्नान करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान नदियों का जल अमृत के समान पवित्र होता है, इसलिए इस दौरान श्रद्धालु दूर-दूर से स्नान करने आते हैं। प्रयागराज के संगम स्थल, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है, को विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त है। श्रद्धालु यहां स्नान कर अपने पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

कुंभ मेला हर 12 वर्ष में ही क्यों –  मान्यता है कि कुंभ मेले की उत्पत्ति समुद्र मंथन की प्राचीन कथा से जुड़ी है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों के बीच 12 दिव्य दिनों तक संघर्ष चला था। ये 12 दिन पृथ्वी के 12 वर्षों के बराबर माने जाते हैं। कथा के अनुसार, इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें 12 स्थानों पर गिरी थीं, जिनमें से चार स्थान पृथ्वी पर स्थित हैं, जो प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक हैं। यही कारण है कि इन स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। वहीं ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो बृहस्पति ग्रह हर 12 वर्षों में 12 राशियों का चक्र पूरा करता है। ऐसे में कुंभ मेला का आयोजन उस समय होता है, जब बृहस्पति किसी विशेष राशि में स्थित होते हैं।