बेंगलुरु। कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को राहत देते हुए उसके खिलाफ दर्ज कराई गई एफआईआर रद्द करने का आदेश दिया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि एक व्यक्ति पर एक महिला जोकि शादीशुदा है, धोखा देने का आरोप नहीं लगा सकती है।
न्यायमूर्ति एम नागाप्रसन्ना की सिंगल बेंच ने व्यक्ति के खिलाफ दायर याचिका को रद्द करने का आदेश देते हुए कहा, धोखाधड़ी का आरोप इस आधार पर लगाया गया है कि याचिकाकर्ता ने पीड़ित से शादी का वादा तोड़ा है। शिकायतकर्ता ने अदालत में स्वीकार किया है कि वह पहले से शादीशुदा है और उसके एक बेटी है। ऐसे में अगर वह पहले से शादीशुदा है तो शादी का वादा तोड़ने पर धोखा देने का सवाल ही नहीं उठता। ऐसे में इस एफआईआर का कोई मतलब नहीं रह जाता है।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल एक महिला जोकि पहले से शादीशुदा थी और उस शादी से उनको एक बेटी भी हुई थी। कुछ वजहों के कारण उनके पति ने कथित तौर पर उनसे उनके संबंध बिगड़ गए और वह दोनों लोग अलग रहने लगे। इसके बाद ऑफिस में काम कर रही महिला से कार्यस्थल पर याचिकाकर्ता से मुलाकात हुई और दोनों आपसी संबंध में आए, लेकिन बाद में कथित तौर पर महिला का आरोप है कि उन्होंने उनके मोबाईल कॉल को उठाना करना बंद कर दिया। शिकायतकर्ता महिला का कहना है कि उस व्यक्ति ने उनसे शादी का वादा किया था, लेकिन बाद में मना कर दिया, जिस वजह से उनको उस व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के लिए मजबूर होना पड़ा।
अदालत में क्या बोला याचिकाकर्ता ?
याचिकाकर्ता ने अपने ऊपर दर्ज कराई गई एफआईआर, जिसमें कहा गया है कि उसने पीड़िता के साथ शादी करने का वादा पूरा नहीं किया है पर अदालत में सफाई देते हुए कहा कि उसने पीड़िता से कभी भी शादी का वादा नहीं किया था। व्यक्ति ने कहा, यह सही है कि उसने कठिन समय में पीड़िता की पैसे भेजकर लगातार दो साल तक मदद की थी, लेकिन उसने उससे शादी का वादा इसलिए नहीं किया क्योंकि वह पहले से ही शादी में थी और उससे उनको एक बच्चा भी था। रिकॉर्ड चेक करने पर अदालत ने पाया कि वह व्यक्ति लगातार दो सालों तक मलेशिया में था, जहां से उसने पीड़िता को लगातार दो सालों तक पैसे भेजे, जिससे पीड़िता अपना भरण पोषण कर सके।
किस नतीजे पर पहुंची अदालत ?
अदालत ने कहा, पीड़िता पूरी कार्यवाही के दौरान यह बात बता पाने में विफल रही है कि व्यक्ति किसी भी समय उसके पति की भूमिका में था, लिहाजा उस पर लगाए गए आरोपों को सही इसलिए भी नहीं माना जा सकता है क्योंकि पीडिता पहले से शादीशुदा है, उस शादी से उसको बच्चा भी है और जहां तक पति से अलग रहने की बात है तो उसका अभी तक अपने कानूनी पति से तलाक भी नहीं हुआ है, इसलिए, अदालत याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज कराई गई एफआईआर को खारिज करने का आदेश देती है।