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अब चुंबकीय नैनो कण समुद्र के जल को बनाएगा पीने लायक, आइसर के विज्ञानियों ने किया शोध

भोपाल। वैश्विक जगत के लिए लंबे समय से चिंता का विषय बने पेयजल संकट का एक अनूठा हल भोपाल की लैब से बाहर आता दिख रहा है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन रिसर्च (आइसर) के विज्ञानियों ने ऐसे चुंबकीय नैनो कणों का पता लगाया है, जो जल से अशुद्धि को अलग करने में सक्षम हैं। ये नैनो कण मनुष्य के बाल से भी लगभग एक लाख गुना छोटे हैं। ये कण न केवल डाई वाले जल सहित प्रदूषित जल को शुद्ध कर सकते हैं, बल्कि समुद्री जल से नमक को अलग कर उसे पीने लायक बनाने में भी सक्षम हैं।

अपशिष्ट जल से भी शुद्ध पानी निकालने में मिलेगी मदद

खास बात यह है कि अपशिष्ट जल को शुद्ध और खारे जल को पेयजल में बदलने की क्षमता रखने वाली यह जैविक तकनीक वर्तमान में उपलब्ध तकनीकों से कई गुना सस्ती है, ऐसे में इसके औद्योगिक उत्पादन और प्रयोग की प्रचुर संभावनाएं हैं, जिस पर काम चल रहा है, ताकि शुद्ध जल की कमी न हो। एक अनुमान के अनुसार जल्द ही दुनिया की लगभग दो-तिहाई आबादी पानी की कमी की समस्या से जूझती नजर आएगी। इसी को ध्यान में रखकर विज्ञानियों ने इस शोध को आगे बढ़ाया है।

आइसर भोपाल के सहायक प्रोफेसर ने किया शोध

इस शोध को आइसर भोपाल के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. शंकर चाकमा ने किया है। शोध को अमेरिकन केमिकल सोसायटी ईएसटी इंजीनियरिंग जर्नल में प्रकाशित किया जा चुका है। इस शोध में शोधार्थी विश्रांत कुमार, अभिनव चंदेल, प्राची उपाध्याय और डा. शंकर चाकमा का विशेष योगदान रहा है। इस शोध में एक साल का समय लगा।

अब तक की विधि काफी महंगी

अभी समुद्री जल से नमक को अलग करने के लिए आसवन या रिवर्स ओसमोसिस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, जो काफी महंगी है। अब इस तकनीक की मदद से फोटोथर्मल (प्रकाश ताप) सहायक अलवणीकरण विधि का उपयोग किया जा सकता है। यह अन्य विधियों से काफी सस्ती है।

मिट्टी के दीये से तैयार किया चुंबकीय नैनो कण

शोधकर्ताओं ने चुंबकीय छिद्रित कार्बन नैनो कणों को तैयार करने के लिए मिट्टी के दीयों का उपयोग किया। इसे बनाने के लिए कपास को नीकेल नाइट्रेट सॉल्यूशन में डुबोकर रखा। फिर उसे निकालकर सूखाने के बाद सरसों के तेल से डुबाया। उसमें आग का उपयोग भी किया गया। इस शोध के अनुसार प्रकाश और गर्मी के संपर्क में आने पर ये नैनो कण पानी से डाई के अणुओं को पूरी तरह से हटा देते हैं। इसके अलावा ये कण इन्फ्रारेड विकिरणों को भी अवशोषित करते हैं।

इन कामों में मिलेगी मदद

0 प्रकाश ऊर्जा को उष्मा ऊर्जा में बदलकर समुद्री जल से नमक को अलग करना।
0 बर्फ को पिघलाना और बर्फ को न जमने देना।
0 दूषित और अपशिष्ट जल से पीने योग्य पानी निकालना।

आइसर केमिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. शंकर चाकमा ने कहा कि इस शोध से पानी को उपयोग के लायक बनाया जा सकता है। इससे पानी की कमी की समस्या से जूझ रहे क्षेत्रों के लोगों को फायदा मिलेगा। इससे करीब 40 प्रतिशत तटीय समुदायों के लिए स्थानीय जल स्त्रोत उपलब्ध कराया जा सकता है, इसलिए यह प्रक्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण है।