इंफाल। मणिपुर में कुकी और मैतई समुदाय के बीच हुई झड़पों में 175 लोगों की मौत हुई है। सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को इस मामले पर सुनवाई हुई, जहां मई से ही मुर्दाघरों में पड़े 169 पहचाने गए शवों के अंतिम संस्कार को लेकर राज्य सरकार और नागरिक समाज संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों के बीच तीखी नोकझोंक हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि पहचाने गए शवों का अगले सात दिनों के भीतर अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए। तीन जजों की पीठ की अध्यक्षता करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हम मुर्दाघरों में शवों को हमेशा के लिए नहीं रख सकते हैं। अदालत ने कहा कि वे मृतक सम्मान के साथ अंतिम विदाई के हकदार हैं। शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि मणिपुर सरकार 81 पहचाने गए पीड़ितों के परिवारों को 4 दिसंबर तक सरकारी-चिह्नित स्थल पर अंतिम संस्कार करने की अनुमति देगी। मणिपुर में मई से ही रुक-रुककर हिंसा हो रही है।
शवों को दफनाने पर विवाद
एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य के हालात सुधारने के लिए नियुक्त की गईं जस्टिस गीता मित्तल समिति ने कहा कि नागरिक समाज समूह अनुपयुक्त जगहों पर शवों को दफनाने पर जोर दे रहे हैं। इसकी वजह से तनाव बढ़ रहा है, जहां नागरिक समाज समूह शवों को दफनाना चाहते हैं, वे पहाड़ी जिलों और घाटी के बीच अंतर-जिला सीमा पर हैं। इस वजह से एक बार फिर से घाटी और पहाड़ी जिलों में रहने वाले कुकी और मैतई समुदाय के बीच टकराव का खतरा बढ़ रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि राज्य को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि पीड़ितों की अंतिम यात्रा में किसी भी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप नहीं हो। जस्टिस मित्तल समिति ने बताया है कि पहचाने गए 169 शवों में से 81 पर परिवारों ने दावा किया है, जबकि 88 अभी भी लावारिस हैं। समिति ने 21 अक्टूबर को जमा किए गए अपने रिपोर्ट में कहा था कि नागरिक समाज संगठन मृतकों के परिजनों को उनके अंतिम संस्कार के लिए उनके शव ले जाने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं।