श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले के बाद से आज यानी बुधवार को उत्तरी कश्मीर के उरी में सेना के जवानों ने एक घुसपैठ के प्रयास को विफल कर दिया है। इस दौरान मुठभेड़ में दो आतंकियों को मार गिराया गया है। बुधवार को उत्तरी कश्मीर में उरी सेक्टर के अंतर्गत आतंकी घुसपैठ का प्रयास कर रहे थे। हालांकि, सेना के जवानों ने आतंकियों के इस प्रयास को विफल कर दिया गया है। फिलहाल यहां आतंकियों और जवानों के बीच में मुठभेड़ जारी है। भारतीय सेना ने जानकारी देते हुए बताया कि बुधवार को जम्मू-कश्मीर के बारामूला जिले में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर घुसपैठ की कोशिश नाकाम कर दी गई।
चिनार कोर ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि 23 अप्रैल 2025 को, लगभग 2-3 यूआई आतंकवादियों ने उरी नाला, बारामूला (उत्तरी कश्मीर में) में सरजीवन के सामान्य क्षेत्र से घुसपैठ करने की कोशिश की। सेना ने कहा कि नियंत्रण रेखा पर सतर्क सैनिकों ने घुसपैठियों को चुनौती दी और उन्हें रोका, जिसके परिणामस्वरूप गोलीबारी हुई। फिलहाल ऑपरेशन जारी है। सुरक्षाबलों और आतंकवादियों के बीच भारी गोलीबारी में दो आतंकवादियों को मार गिराया गया है। उरी में मारे गए आतंकवादियों के पास से भारी मात्रा में हथियार, गोला-बारूद और युद्ध जैसे अन्य सामान बरामद किए गए हैं।
आतंकियों से अकेला भिड़ा, राइफल छीनी, कश्मीरी ने ऐसे बचाई कई लोगों की जान
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के बैसरन में जब आतंकियों ने सैलानियों से धर्म पूछकर उनका कत्ल शुरू किया तो सैयद हुसैन शाह सहन नहीं कर पाया। करता भी कैसे, वह तो कश्मीरियत और कश्मीर की मेहमाननवाजी की परंपरा की घुट्टी पीकर पला-बढ़ा था। वह देश-विदेश से पहलगाम आने वाले सैलानियों को अपने घोड़े पर सैर कराता और रोजी रोटी कमाता था। सैयद हुसैन शाह पहलगाम से पास स्थित अशमुकाम का रहने वाला है। वह सैलानियों को लेकर बैसरन गया हुआ था। सैयद हुसैन को जब कुछ और नहीं सूझा तो वह एक आतंकी से भिड़ गया और उसने उसकी राइफल छीनने की कोशिश की। इसी क्रम में आतंकी की राइफल से निकली गोलियां उसका शरीर को भेद गई और वह वहीं जमीन पर जख्मी होकर गिर पड़ा। उसे अन्य घायलों के साथ जब अस्पताल पहुंचाया गया तो वह दम तोड़ चुका था। देर शाम पोस्टमार्टम के बाद उसका पार्थिव शरीर उसके परिजनों के हवाले कर दिया गया। उसे देर रात गए सुपुर्दे खाक किया गया। सैयद हुसैन शाह के एक साथी बिलाल ने बताया कि अगर सैयद हुसैन चाहता तो अपनी जान बचा सकता था, लेकिन उसने भागने के बजाय आतंकियों का मुकाबला किया। उसकी बहादुरी और बलिदान के कारण कई लोगों की जान बची है। अगर वह आतंकियों का मुकाबला न करता तो शायद बैसरन में आज जितने भी लोग जमा थे, सभी मारे जाते।