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रायगढ़

अर्द्धरात्रि के बाद ध्यान से सामान्य अवस्था में आते हैं हठयोगी बाबा सत्यनारायण, तपस्या को हुए 25 वर्ष पूर्ण

रायगढ़।  हमारे धर्म ग्रंथों में ऋषि मुनियों के द्वारा बरसों-बरस जंगलों, पहाड़ों और कंदराओं में कठोर तपस्या करने का वर्णन मिलता है। साधारण तौर पर लोग इसे काल्पनिक कथा, मनगढंत कहानियां ही समझते हैं, लेकिन छतीसगढ़ के लोग इसे आज भी जीवंत रूप में देख रहे हैं। छत्तीसगढ़ के जिला रायगढ़ से लगे ग्राम कोसमनारा में 16 फरवरी 1998 से तपस्या में लीन बाबा सत्यनारायण को आज 25 वर्ष पूर्ण हो गए। रायगढ़ में गर्मी के मौसम में तापमान 47 डिग्री तक पहुंच जाता है। ऐसे गर्म मौसम सहित कपकपाती ठंड और भारी बरसात में भी बिना छत के हठ योग करते बाबा सत्यनारायण को आज 25 वर्ष पूर्ण हो गए। अब तो श्री सत्यनारायण बाबाजी का दर्शन कर लेना ही अपने आप में सम्पूर्ण तीर्थ के समान है। बाबा कब क्या खाते हैं, कब समाधि से उठते हैं, आम लोगों को पता नहीं, लेकिन बाबा धाम की सेवा व व्यवस्था में लगे करीबी लोग बताते हैं कि चौबीस घंटे में केवल एक बार अर्द्धरात्रि के बाद ध्यान से सामान्य अवस्था में आते हैं। दूध एवं फल ग्रहण करते हैं। लोगों को दर्शन देकर समस्याएं सुनते हैं। इशारों में बातें करते हैं, जिसे सेवक गण दर्शनार्थियों को बताते हैं। श्री सत्यनारायण बाबा धाम में किसी प्रकार का आडंबर नही है, अंधविश्वास नहीं है। किसी प्रकार का कोई ताबीज दवाई नहीं दिया जाता। केवल यज्ञ कुंड का भभूत प्रसाद के रूप में देते हैं। श्री सत्यनारायण बाबा धाम में निःशुल्क प्रवेश, प्रसाद भोजन वितरित किया जाता है।हलधर से बना सत्यनारायणकोसमनारा से 19 किलोमीटर दूर देवरी, डूमरपाली में एक साधारण किसान दयानिधि साहू एवं हंसमती साहू के परिवार में 12 जुलाई 1984 को बालक हलधर के रूप में अवतरित हुआ। बाबाजी बचपन से ही आध्यात्मिक रुचि के थे। एक बार गांव के ही तालाब के बगल में स्थित शिव मंदिर में वे लगातार 7 दिनों तक तपस्या करते रहे। माता-पिता और गांव वालों की समझाइश पर वे घर लौटे। लेकिन उनके भीतर शिवजी विराज चुके थे। 14 वर्ष की अवस्था में एक दिन वे स्कूल के लिए बस्ता लेकर निकले मगर स्कूल नहीं गए। बाबाजी सफेद शर्ट और खाकी हाफ पैंट के स्कूल ड्रेस में ही रायगढ़ की ओर रवाना हो गए। अपने गांव से 19 किलोमीटर दूर और रायगढ़ शहर के पास स्थित कोसमनारा वे पैदल ही पहुंचे। कोसमनारा गांव से कुछ दूरी पर एक बंजर जमीन पर उन्होंने कुछ पत्थरों को इकट्ठा कर शिवलिंग का रूप दिया और अपनी जीभ काट कर उन्हें समर्पित कर दी। कुछ दिन तक तो किसी को पता नहीं चला, मगर फिर जंगल में आग की तरह खबर फैलती चली गई और लोगों का हुजूम वहां पहुंचने लगा। कुछ लोगों ने बालक बाबा की निगरानी भी की मगर बाबा जी तपस्या में जो लीन हुए तो आज तक उसी जगह पर हठ योग तपस्या में लीन हैं।माता पिता ने बचपन में उन्हें नाम दिया था हलधर, पिता प्यार से सत्यम कह कर बुलाते थे। उनके हठयोग को देख कर लोगों ने नाम दे दिया बाबा सत्य नारायण। श्री सत्यनारायण बाबा बात नहीं करते, मगर जब ध्यान से बाहर आते हैं तो भक्तों से ईशारे में हो संवाद कर लेते हैं।कोसमनारा बना गया श्री सत्यनारायण धामकोसमनारा की धरा को तीर्थ स्थल बनाने वाले बाबा सत्यनारायण के दर्शन करने वाले भक्तों के लिए अब उस तपस्या स्थल पर लगभग सभी प्रकार की व्यवस्था हो गई है, किंतु बाबा ने खुद के सर पर छांव करने से भी मना किया हुआ है। आज श्री सत्यनारायण बाबा को तपस्या करते 25 वर्ष हो गए। श्रद्धालुजन सत्यनारायण बाबा की तपस्या का स्थापना का पच्चीसवां वर्ष रजत जयंती के रुप में मना रहे हैं। वहीं श्री सत्यनारायण बाबा जी का कठोर तप सतत जारी है।

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