देशभर में नवरात्र का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। पूजा पंडालों में जहां मां की आराधना की जा रही है, वहीं गरबा-डांडिया कर श्रद्धालु मां को प्रसन्न करने में लगे हुए हैं। लेकिन इस बार अष्टमी और नवमी व्रत को लेकर श्रद्धालुओं में बड़ा कंफ्यूजन बना हुआ है।
दरअसल इस बार नवरात्रि में तिथि कुछ इस तरह से चल रही है कि विजयदशमी के दिन नवरात्रि का पर्व समाप्त हो रहा है। तिथियों का ऐसा फेर है कि एक ही दिन में दो तिथियां लग रही हैं। यही क्रम दशहरे तक चल रहा है। ऐसे में इस बार अष्टमी और नवमीं व्रत को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। श्रद्धालुओं यह समझ नहीं पा रहे हैं कि अष्टमी या नवमीं का व्रत कौन से दिन करें। आइए जानते हैं अष्टमी का व्रत कब रखा जाएगा और नवरात्रि नवमीं का व्रत कब माना जाएगा।
0 कब है अष्टमी-नवमीं का व्रत ?
पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि का आरंभ 10 अक्टूबर को दोपहर में 12 बजकर 32 मिनट पर हो रहा है और 11 तारीख को अष्टमी तिथि दोपहर में 12 बजकर 7 मिनट तक रहेगी। इसके तुरंत बाद ही नवमी तिथि का आरंभ हो जाएगा। हिंदू शास्त्रों के अनुसार सप्तमी युक्त अष्टमी तिथि का व्रत रखना वर्जित है, इसलिए अष्टमी का व्रत अगले दिन यानी 11 अक्टूबर को रखा जाएगा, जबकि नवमी तिथि 12 तारीख को सुबह 10 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। पंचांग की गणना के अनुसार, जिन लोगों को अष्टमी का व्रत रखना है वह 10 अक्टूबर (गुरुवार) को अष्टमी का व्रत रखेंगे और नवमी तिथि का व्रत रखना है वह 11 अक्टूबर शुक्रवार के दिन रखेंगे।
0 कब करें कन्या पूजन ?
तिथि के हेरफेर के बीच में कंफ्यूजन यह भी बना हुआ है कि कन्या पूजन कब करना है। जिन लोगों का महाअष्टमी पूजा होता है उन्हें कन्या पूजन 11 अक्टूबर शुक्रवार के दिन करना होगा और जिन लोगों को नवमी तिथि का पूजन करना है वह 12 अक्टूबर शनिवार को सुबह 10 बजकर 59 मिनट से पहले पहले कन्या पूजन कर लें। क्योंकि, इसके बाद दशमी तिथि आरंभ हो जाएगी।
महाअष्टमी का महत्व- नवरात्रि में आने वाली अष्टमी को महाअष्टमी कहा जाता है। इसे महानिशा की रात भी कहा जाता है। इस दिन मां दुर्गा के सबसे शक्तिशाली रूप से पूजा की जाती है। इस दिन मां दुर्गा की पूजा के साथ-साथ कन्या पूजन का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन जो व्यक्ति कन्या पूजन करता है उसके घर में सुख समृद्धि का वास होता है और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। महाअष्टमी पर मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा की जाती है। मां महागौरी को अन्नपूर्णा का स्वरुप माना जाता है। इसलिए इस दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है।
महानवमी का महत्व- महानवमी पर मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि सिद्धिदात्री की पूजा से व्यक्ति को सारी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से व्यक्ति रोग मुक्ति और भय मुक्त हो जाता है। महानवमीं के दिन मां सिद्धिदात्री अपने भक्तों को व्रत का फल देती हैं। इसलिए महानवमीं का महत्व सबसे अधिक माना जाता है।